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________________ चरणानुयोग सुरनरकिन्नरनुतनं, परम श्री वीरनाथनं नेनेदोवि ॥ वरभव्यजनके पेळ यें, निरुपम चरणानुयोगमं कन्नदं ॥२॥ अर्थात- सुर नर और किन्नर लोग जिनको नमस्कार करते हैं ऐसे परम परमेश्वर श्री वीरनाथ भगवान को स्मरण करके में भव्य जीवों के कल्याण के लिये हिन्दी भाषा में चरणानुयोग का व्याख्यान करता हूँ । . सूत्रावतार का विशेष कारण ज्ञान और चारित्र है । उस ज्ञान और चारित्र का मूलभूत सम्यक्त्व है, जैसे कि महल के लिये नींव । सम्यक्त्व मोक्ष पुर के प्रति गमन करने वाले को पाथेय के समान है। मुक्ति लक्ष्मी के विलास के जिसे गणिमर्पण के समान है। संसार समुद्र में गिरते हुए प्राणियों को बचाये रखने के लिये हस्तावलम्बन के समान है। ग्यारह प्रतिमामय श्रावक धर्म रूप प्रासाद के लिए अधिष्ठान के समान है । परम कुशलता देने वाले उत्तम क्षमादि दश धर्म रूप कल्पपादप के लिये जड़ के समान है । परमोत्तम लक्ष्मी के साथ समागम करने के लिये मंगल रत्नमय महल है । विषम जो दर्शन मोह रूप उग्रग्रह, उसके उच्चाटन के लिए परमोत्तम यन्त्र है। दीर्घं संसार रूप जो काला सांप हैं उसके मुह से उत्पन्न हुए भयंकर विष को मिटाने के लिये मारणतन्त्र है । मोक्ष लक्ष्मी को वश में करने के लिए परमोत्तम वशीकरण मन्त्र है । व्यन्तर विष और रोगादि-जन्य क्षुद्रोपद्रवों को नाश करने के लिए रक्षा मरिण के समान है। आसन्न भव्य के लिये मनोवांछित फल प्रदान करने वाले चिन्तामरिप के समान है। भव्य जीव रूप लोहे को स्पर्श मात्र से जातरूप (सुवर्णमय या दिगम्बर मुनि मय) बना देने वाली पारस रत्न के समान है । सम्पूर्ण पाप रूप वन को जला डालने के लिए दावानल अग्नि के समान है । ज्ञान और वैराग्य रूप बगीचे के लिये बसंत ऋतु के समान है। विशिष्ट पुण्य कर्म का अनुष्ठान करने के लिये पवित्र तीर्थ है। जन्म जरा और मरण को मिटाने के लिए सिद्ध रसायनका पिटारा है, आठ ग्रंगों की पुष्टि के लिए उत्तम पुष्प मंजरी के समान हैं । ऐसे उस सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए पाँच लब्धियों की श्रावश्यकता है, उन पंच लब्धियों का वर्णन के लिए सूत्र ---- पंच लब्धयः ॥ १॥ अर्थ — सम्यक्त्व उदय होने के लिए ५ लब्धियां होती हैं । श्रम भरणानुयोगान्तर्गत पाँच लब्धियों का वर्णन किया जाता है ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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