SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ T ( १४८ ) बुसु सु चदुदुखुदुखु चदु तित्तिसुसेसेसु वह उस्सेहो । रमणी सत्त छष्पष्ण चत्तारिदले हीरणकमा ॥ ५४३ त्रि०स० अब आयु बतलाते हैं : कानड़ी श्लोक: रडे पत्तु पदिना - | 。 केरडुतरेया पे स्थितिथिप्प || तेरडु वरमत्ता श्रदु । तरेयि भूत मूरुवरमंबुधिगळ ॥४४॥ सौधर्म ईशान कल्प में कुछ अधिक दो सागरोपम उत्कृष्ट श्रायु है, वह आगे के तोसरे चौथे स्वर्ग में जघन्य है, ऐसा ही कम ऊपर ऊपर है । सोहम्म वरं पल्लं वरमुहिविं सत्तदस य चोहस्यं । वाथीसोत्ति दुवड्ढी एक्केकं जाव तेतीसं ॥ २७॥ अर्थ- सौधर्म कल्प में जघन्य एक पल्य उत्कृष्ट २ सागरोपम फिर क्रम से ७, १०, १४, १६, १८, २०, २२, २३, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ३२ ३३ सागर । सर्वार्थ सिद्धि में तेतीस सागर ही जघन्य उत्कृष्ट श्रायु है । सम्मे घादे ऊरणं सायरदलमहियमा सहस्सारा । जलहि दल मुडुवराऊ पदलं पडि जारण हारिणश्चयं ॥ २८ ॥ प्रथम कल्प द्वय में हानि वृद्धि के प्रमाण सागरोपम के त्रिंशत् भाग होने से है प्रत्युत्कृष्ट आयुष्य है, 35, 333 पट *, **, **, 14, 11, 12, 1, 2, 36, 11, 12, 5, 17, 34, 94, 93, सनत कुमार युगल में वे ब्रह्म युगल में ३३ का छेद करने से, हैं, लांब द्वय में धूम २६ शुक्र द्वय ३३ में शतार द्वय में ३७ को प्रान्त द्वय में त्रातायुष्य ( अकाल मृत्यु वाले ) की उत्पत्ति नहीं है । ५६, ३६, २० प्रारण युग में इस से ऊपर वालों की उपर्युक्त कहे हुए घाति प्रायुष्य में तीन इन्द्रकमें जघन्य आयु पल्य के तीन भाग है हैं । उबहिदलं पल्लद्ध' भवणे वित्तर दुगे कमेरग हियं । सम्मे मिच्छे घादे पल्लासंखं तु सव्वत्थ ॥ ५४०|| पूतायुष्य में सम्यग्दृष्टि को अर्ध सागरोपप अधिक है । व्यंतर ज्योतिष्क में सम्यग्दृष्टि की श्रायु य पत्योपम से अधिक है । किन्तु भवनवासियों में के प्रसुर 7
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy