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________________ L ( १४६ ) ७६६८०४ ब्रह्मद्वय में ३६६६३६, लांतवद्वय में ४६५४२ शुक्रद्वय में ३६६२७ सतारद्वय में ५६३१, प्रात्ततादि चतुष्क में ३७०, अधोग्र वेयकत्रम में प्रकीर्णक नहीं है । मध्यम प्रै बेयक में ३२, उपरिम नैवेयक त्रय में ५२, नवानुदिश में ४, पंचानुत्तर में प्रकोपक नहीं हैं । इस प्रकार सभी प्रकीर्णक मिलकर ८४८९१४४ होते हैं । चतुरशीतिलक्षसप्तनवतिसहस्रत्रयोविंशतिविमानानि ।।१३।। अर्थः-८४६७०२३ यह विमानों की संख्या है। यह किस प्रकार है यह बतलाते हैं । साधर्म कल्प में ३२००००० विमान है ईशान में २८००००० विमान है । सानत कुमार में १२०००००, महेन्द्र कल्प में ८००००० ब्रह्मद्वय में ४०००००, लांतवद्वय में ५०००० शुऋद्वय में ४००००, शतार द्वय में ६०००, आनतादि चतुष्कों में ७०००, अधोवेयक त्रय में १११, मध्यम ग्रंवेयक में १०७, उपरिम वेयक अय में ११ नवानुदिश में १, पंचानुत्तर में ५ विमान हैं और प्रत्येक में जिन मन्दिर है। पुनः सौधर्मादि इन्द की महादेवी पाठ पाठ हैं । उन एक-एक देवियों के प्रतिबद्ध परिवार देवी और १६०००होनेसे,सौधर्म ईशानदेवों की संख्या १२८००० होती है और प्रागे पांच युगलों में अर्ध अर्ध यथा-क्रम से होती है जैसे कि ६४००० सानत कुमार हुए लो, ३२००० मोहन्द्र को, १६००० लांतब को और महा शुक्र को ८००० । सहस्रार को ४००० । आनतादि चतुष्कों को २०००, २००० स्त्रियां होती हैं और पटरानी सौधर्म ईशान इन्द्र को ३२००० सानत १ मोहन्द्र को ८०००, बान्द्र को २०००, लांतव को ५००, महाशुक्र को २५०, सहास्रार इन्द्र को १२५, प्रानतादि चार प्रत्येक को प्रेसठवेसठ होती हैं । दक्षिणोत्तर काल्प के देवों की देवियों के उत्पत्ति स्थान विमान सौधर्म कल्प में ६००००० होते हैं। ईशान कल्प में ४००००० । देवों के काम सुख के अनुभव को बताते हैं:-.. भवन वासी से ईशान कल्प तक रहने बाले देव और देवियाँ कायप्रविचार वाली होती हैं । मनुष्य के समान अनुभव करें तो उनकी तप्ति होती है । सानतकुमार माहेन्द्र कल्प के देव-देवियों को स्पर्श मात्र से तृप्ति हो जाती है । अर्थात् अन्योन्यांग स्पर्श मात्र से ही काम सुख की तृप्ति हो जाती है । इस से ऊपर के चार कल्प के देब देवियों के रूप का अवलोकन करने मात्र से उनकी तृप्ति हो जाती है। अर्थात् उनके शृङ्गार, रूप, लावण्य, हाव भाव, विभ्रम देख कर उनकी तृप्ति हो जाती है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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