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________________ ( १४५ ) वह सर्वार्थ सिद्धि जम्बू द्वीप के प्रमाण एक लाख योजन है। उन दोनों को घटाने पर ४४००००० योजन में शेष ६२ पटलों का भाग करने से आया हुआ लब्ध शेष इन्द्रक विमानों के हानि चयका प्रमाण पाता है । जैसा कि नीचे की गाथा में लिखा है: गाभिगिरिधूलिगुर्वार वालग्गंतर द्वियो हु उडुइंदो। सिद्धी दो धो बारह जोयणमारगम्हि सन्चट्ठ॥२३॥ माणुसखित्तपमारगं उडुसबढ़तु जम्बुदीवसमं । उभय विसेसेरूकरिंग व्य भजदे दु हाणिचयं ॥ पुन: उस इन्द्रका की चार दिशा में कम से रहने वाले श्रेणी-वद्ध विमाम इस प्रकार हैं: पहले के इन्द्रक की चार दिशाओं में श्रेरिणवद्ध ६२ है । यहाँ से ऊपर के सभी पटलों की चार दिशा में कम से एक एक श्रेणीबद्ध कम होता चला गया है । वहाँ से नवानुदिश पंचानुत्तर की दिशा में एक एक ही श्रेणीबद्ध है। यह कैसे ! उसके लिए सूत्र कहते हैं: -- “ोडशोत्तराष्टशतसप्तसहस्रगिवद्धानि" ॥११॥ अर्थः-सात हजार आठ सौ सोलह श्रेणीबद्ध विमान हैं । सौधर्म कल्प में ४३७५ श्रेणीबद्ध बिमान हैं । ईशान कल्प में १४६७ श्रेणीवद्ध हैं। सनत्कुमार कल्प में ५८८ श्रेरिणवद्ध हैं । माहेन्द्र कल्प में १६६ श्रेणीवद्ध हैं । ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में ३६० हैं। लांतब य में १५६, शुक्रद्वय में ७२, शतारद्वय में ६८, आनतादि चतुष्क में ३२४, अधो बेयकत्रय में १०८, मध्यम अवेयकत्रय में ७२, उपरिम ग्रेवेयक श्रय में ३६, नवानुदिश में ४ इस प्रकार सभी मिलकर ७८१६ श्रेणीबद्ध होते हैं । ये सभी संख्यात योजन विस्तार वाले होते हैं । चतुरशीतिला कोननवतिसहस्त्रं कशतचतुश्चत्वारिंशद प्रकीर्ण कानि ॥१२॥ अर्थ-प्रकीर्णक विमानों की संख्या ८४८६१४४ है। इन्द्रक से लगे श्रेणीवद्ध विमानों के बीच में प्रकीर्णक इस प्रकार हैं। सेढोणं विच्चाले पुफ्फपइण्णग इथ ट्ठियधिमारणा । होति पइपाइणामा सेढिविय होणरासिसमा ॥२५॥ अर्थ-पौधर्म कल्प में ३१ लाख ६५ हजार पांच सौ अठानबे (३१६५५६८), ईशान में २७६८५४३, सनत् कुमार में ११६६४०५, महेन्द्र कल्प में
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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