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( १३७ ) नक्षत्र के दूसरे पाद में है। कृतिका नक्षत्र के द्वितीय पाद में वृषभ राशि होती है। इसको निम्नलिखित कुण्डली में देखिये-(शक संवत् १८७६ आषाढ़ सुदी २ शनिवार ।)
ईश्वरचन्द्र की १२ राशियां उपरिलिखित कुण्डली में यथा स्थान हैं। तदनुसार गुरु तीसरे स्थान पर, शनि ईश्वरचन्द्र के नौंवे स्थान पर है। इसी प्रकार अन्य ग्रहों को भी समझ लेना चाहिये । परन्तु जन्म कुण्डली के ग्रह राशि के अनुसार बदलते रहते हैं। इसको सावधानी से देखना चाहिये ।
ग्रहों द्वारा राशि परिवर्तन का विचारपंचांग में लिखे हुए तिथि, वार, नक्षत्र, योग कर्ण की पंक्ति में १-'म' सिंहे ज्ञः लिखा होता है। इसका अभिप्राय यह है कि उस दिन सिंह राशि में बुध आया समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार का 'उत्तरा दूसरे चरण में कन्ये शुक्रः' इस प्रकार लिखा होता है इसका अर्थ यह है कि उस दिन उत्तरा नक्षत्र में शुक्र सिंह राशि को छोड़ कर कन्या राशि में आ गया है । इस प्रकार इस विषय को पंचांग में दिये गये संकेशों के अनुसार राशि बदलने की विधि समझ लेना चाहिए।
इसके गिवाय प्रत्येक मास में तुले रविः या तुलेऽर्क: कर्क गुरुः मिथुने कुजः इस प्रकार पंचाँग में जहां तहां राशि परिवर्तन लिखा होता है उसके अनुसार ग्रह द्वारा राशि परिवर्तन के स्थान पर घड़ी पल आदि भी लिखा होता है जैसे -'सिंहे अधः ५५ घड़ी ४ पल' लिखा है इस का अभिप्राय यह है कि सूर्य उदय से ५५ घड़ी ४ पल समय बीत जाने पर बुध ग्रह सिंह राशि में आ गया है। इस प्रकार प्रत्येक मास में ग्रह का राशि-परिवर्तन लिखा होता है उसे देख कर मनन कर लेना चाहिए।
नव ग्रह गोचर का फल
सूर्य का फलप्रथम स्थान का रविनाश को प्रगट करता है, दूसरे स्थान का रवि भय हानि को, तीसरे स्थान का रवि व्यापार में धन लाभ को, चौथा रवि रोग पौड़ा मर्यादा भंग को, पांचवां रवि दरिद्रता को, छठा रवि घूमने फिरने को, नौवां रवि नाश तथा अशुभ फल को, दशवां तथा ग्यारहवां रवि अनेक प्रकार का लाभ तथा सुख, बारहवें स्थान का रवि पीड़ा तथा नाश का सूचक है।
चन्द्र का फलपहले स्थान का चन्द्र पुष्टि, अन्न वस्त्र के लाभ को बतलाता है, दूसरा