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________________ ( १३५) नक्षत्र हैं। विशाखा, पूर्वाभाद्रपदा बहिः त्रिपाद नक्षत्र हैं। चित्रा मृगशिर, धनिष्ठा द्विपाद नक्षत्र हैं। रोहिणी, मघा, भरणी दुष्ट नक्षत्र है । परन्तु शनिबार रविवार मंगलबार में त्रिपाद नक्षत्र मिल जाय तो द्विपुष्कर योग होता है और २-७-१२ तिथियोंको ऊपर लिखे हुए पापवार तथा त्रिपाद नक्षत्र मिल जायं तो विपुष्कर योग होता है । इस त्रिपुष्कर योगमें बालकके जन्म होने पर | मास के लिए घर छोड़ कर अन्य जगह निवास करना चाहिए। द्विपुष्कर योग में शिशु जन्म के समय ६ मास के लिए, त्रिपाद में जन्म होने पर ३ मास के लिए मृगशिर चित्रा के द्विपाद में जन्म लेने पर दो मास के लिए, रोहिणी नक्षत्र में जन्म होने पर १२ मास तक, भरणी और मत्रा में ५ मास, धनिष्ठा के ३-४ पाद में जन्म हो तो ८ मास, शततारका में ६ मास, पूर्वाभाद्रपद में जन्म होने पर ८ मास, उत्तराभाद्रपद में जन्म होने पर ३ मास, रेवती में बालक का जन्म होने पर एक मास के लिए धर छोड़ कर अन्य घर में रहना चाहिए फिर शुभ तिथि देखकर मंगल कलश सहित घर में प्रवेश करना चाहिये । विवाह-भंग योगयदि भवतिसितातिरिक्तपक्षे, तनुगृहतः समराशिदः शशाङ्कः । अशुभखचररवीक्षतोऽरिरन्ध्र भवति विवाहविनाशकारकोऽयम् ॥ अर्थ-यदि कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा समराशिका होकर प्रश्न लग्न से छठे या आठवें स्थान में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो विवाह नाशकारक होता है। वैधव्य योग का विचारजन्मोत्थं च विलोक्य बालविधवायोगं विधाय व्रतं, साविभ्याउतपप्पलं हि सुतया दद्यादिमा वा रहः । सहलग्नेऽच्युतमूर्तिपिप्पलघदैः कृत्वा विवाहं स्फुट, दद्यात्ता चिरजोविनेत्र न भवेद्दोषः पुनर्भूभषः ॥ (मुहूर्त चिन्तामणि) अर्थ-जन्म लग्न से कन्या को यदि बाल-विधवा होने का योग हो तो व्रत, पूजन, दान यादि करके उस कन्या को दीर्घजीवी वर के साथ विवाह कर देना चाहिए। यात्रा में सूर्य विचारधनुषसिंहेषु यात्रा प्रशस्ता शनिज्ञोशनोराशिगेचैव मध्या रवी कर्कमोनालिसंस्थेतिदीर्घा, जनुःपञ्चसप्तत्रिताराश्च नेष्टाः ॥ (मुहूर्त चिन्तामरिण)
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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