________________
( १३३ ) है, शेष बचे-उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, शततारका, इन नक्षत्रों में प्रयाण करने से साधारण फल होता है।
अक्षरारम्भ का मुहूर्त
मृगात्कराच्छ तेस्त्रयेऽश्विमूलपूर्विकात्र ये । गुरुहयेऽर्कजीववित्सितेऽह्निषट्शरत्रिके ॥ शिवार्कदिग् द्विकेतिथौ ध्र वान्त्यत्रिभेपरैः, शुभैरधीतिरुत्तमात्रिकोणकेन्द्रगैः स्मृता ॥३८॥
-मुहूर्त चिन्तामणि अर्थात्-मृगशिरा, पाा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी, मूल, तीनोंपूर्वा, पुष्य, श्लेषा, ध्र वसंज्ञक, अनुराधा और रेवती इन नक्षत्रों में तथा रविवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार इन वारों में तथा ६. ५. ३, १५.१२.१०.२ इन तिथियों में जब केन्द्र त्रिकोण गत शुभ ग्रह हों तब विद्यारम्भ करना चाहिए। आगे यज्ञोपवील का समय मुहूर्त चिन्तामणि ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है
वह यहां पर देते हैं।
विधारणा वतवन्धनं निगदितं, गर्भाज्जनेर्वाष्टमे, वर्षे वाप्यथ पञ्चमे क्षितिभुजां षष्ठे तथैकादशे ॥ वैश्यानांपुनरष्टमे ऽप्यथपुनः स्याद्वादशे वत्सरे, कालेऽथद्विगुणेगतेनिगांदते गौरगतदाहुर्बुधाः ॥३६॥
(मुहूर्त चिन्तामणि) अर्थात्-श्राह्मणों को गर्भ से या जन्म से पञ्चम अथवा अष्टम सौर वर्ष में क्षत्रियों को छठे तथा ग्यारहवें वर्ष में और वैश्यों को आठव या बारहवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण करना कहा है। इस कथित समय से दुने समय को पण्डितों ने गौणकाल माना है।
यात्रा में शुभ वारअङ्गारपूर्वे गमने च लाभस्सोमेशनिर्दक्षिण अर्थलाभः ।। बुधे गुरौ पश्चिमकार्यसिद्धिर्भानो मृगे चोत्तर धान्यलाभः ।।
-मुहूर्त चिन्तामणि अर्थ---मंगलवार को पूर्व दिशा में गमन करने से लाभ होता है।