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________________ ( १३१ ) राशियाँ हैं । मेष, कर्क, तुला और मकर ये चार चर राशियाँ हैं। वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ ये स्थिर राशियां हैं। तथा शेष मिथुन, कन्या, धन और मोन मे द्विस्वभाव वाली हैं। मेष, वृषभ, कर्क, धन और मकर ये पांच राशियों पृष्ठोदय हैं, मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक तथा कुंभ ये छ: शिरसोदय राशियाँ है और मीन उभयोदय राशि है। मेष, वृषभ, मिथुन कर्क, वन और मकर ये छः राशियां रात्रि बल - वाली है और शेष सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ तथा मीन ये छ: दिवाबली है । शुभग्रशुभ ग्रहः I पूर्ण चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र ये चार शुभ हैं तथा अच्छा फल देने वाले ग्रह है । सूर्य, क्षीण चन्द्र, कुज, (मंगल) शनि राहु तथा केतु ये छः पाप ग्रह हैं जोकि दुष्ट फल देते हैं । इन पापी ग्रहों के साथ यदि बुध हो जाय तो वह भी फल होता है। रवि, मंगल और गुरु ये ३ पुरुष ग्रह हैं, चन्द्र, शुक्र, तथा राहु ये ३ स्त्री ग्रह हैं तथा बुध, शनि केतु ये ३ नपुंसक ग्रह हैं । अब इन ग्रहों का राशियों पर रहने का समय बतलाते है: रवि शुक्र बुधा मास सार्धमास कुजस्तथा । गुरुर्द्वादशमासस्तु शनिस्त्रिंशत्तथैव च ॥ वर्षाद्ध राहुकेतुस्तु राशिस्थितिरितीरितम् । अर्थ — रवि, शुक्र और बुध ये तीनों ग्रह एक मास पर्यन्त एक राशि पर रहते हैं, मंगल डेढ़ मास तक १ राशि पर रहता है, गुरु एक राशि पर १२ मास तक रहता है, शनि १ राशि पर ३० मास तक रहता है तथा केतु और राहु १ राशि पर डेढ़ वर्ष तक रहते हैं तथा चन्द्रमा १ राशि पर सवा दो दिन तक रहता है । ग्रहों की जातियां : गुरु और चन्द्र ब्राह्मण वर्ण, रवि और मंगल क्षत्रिय वर्णं, बुध 'वैश्य वर्णं, शुक्र शूद्र वर्ण, शनि, राहु तथा केतु नीच वर्ण वाले होते हैं । यंत्र मंत्र व्रतादिके मूहूर्त -- उफा हस्ताश्विनी करणं विशाखामृगभेहनि । शुभे सूर्ययुते शस्तं मंत्रयंत्रत्रतादिकं ॥ भावार्थ - उत्तरा, हस्त, अश्विनी, श्रवरण, विशाखा, मृगशिरा इन छः नक्षत्रों में, तथा रवि, सोम, गुरु, शुक्रवार में किया हुआ मंत्र, यंत्रादि का आराधन
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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