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भावार्थ---तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण इन सबको मिलाने को पंचांग कहते हैं । इस पांच अंग के अलावा उपयोगी अनेक विषयों को पंचांग में लिखने की पद्धति आजकल बहुत प्रचलित है।
तिथि वार नक्षत्र और योग के समान ६० घड़ी पूर्ण न होकर करण जो है वह एक दिन में तीस तीस घड़ी के प्रमाण दो हो जाते हैं । अब आये चर स्थिर करणों को बतलाते हैं-- बव, वालंब, कौलव, तैतिल, गर्ज वणिज, भद्र ये सात चरकरण हैं । शकुनि, चतुष्पाद, नागवान , किस्तुघ्न ये चार करण स्थिर करण होते हैं।
चरकरण की उत्पत्ति
जिस तिथि का करण देखना हो उस तिथि तक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर गत तिथियों को गिने । जो संख्या आवे उसे दो से गुणा करे और लब्ध को ७ से भाग दे । भाग देने से जो शेष बचे उसी संख्या वाला चर करण नित्य तिथि के पूर्वाद्ध में समझना चाहिए। उत्तरार्द्ध तिथि के लिए गत तिथियों को दो से गुणा करके १ और जोड़ दें । तत्पश्चात् ७ से भाग देकर जो बचे उस संख्या वाला वधादि करण समझना चाहिए । ३० घड़ी से यदि कम तिथि हो तो उसे उत्तरार्द्ध समझना और यदि अधिक हो तो पूर्वाद्ध ।
उदाहरणार्थ-शक संवत् १८५२ थावरण सुदी १२ को कौनसा करण है? ऐसा प्रश्न करने पर देखा गया कि वह तिथि ३० घड़ो से कम है। इसलिए वह उत्तरार्द्ध तिथि हुईं। अब गत तिथि ११ को दो से गुणा करने पर २२ हुमा और उसमें १ मिलाकर ७ से भाग दिया तो शेष दो बचा, जोकि दूसरा वालव करण हुआ। यह चर करण का नियम हुआ।
स्थिर करण की उत्पत्ति:- कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के उत्तरार्द्ध में शकुनिकरण, अमावस्या के पूर्वाद्ध में चतुष्पाद और उत्तरार्द्ध में नागवान करण होता है। तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वाद्ध में किंस्तुघ्न करण होता है। यहां इतना और समझ लेना चाहिए कि तिथि और नक्षत्रों के समान आगे पीछे न होकर करण की उत्पत्ति नियत रूप से होती है।
राशियों के विषय:
मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धन और कुम्भ ये ६ राशियां विषम हैं अथवा ये क्रू र स्वभाव वाली पुरुष राशियाँ हैं। इनके अतिरिक्त (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर तथा मीन) राशियां युग्म राशि, सौम्य स्वभाव वाली स्त्री