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( १२० )
जैन सिद्धान्त शास्त्र के अनुसार ६० संवत्सरों के नाम
उत्तम संवत्सर
कनिष्ठ संवत्सर
४१ प्लवंग
४२ कीलक
४३ सौम्य
१ प्रभव
२
विभव
३ शुक्ल
४ प्रमोदित
५. प्रजोत्पत्ति
६
अगोरस
७
५
श्री मुख
भाव
€
युव
१० धातु ११ ईश्वर
१२ बहुधान्य
१३ प्रमाथि
१४ विक्रम
१५ विषु (वृष)
१६ चित्र भानु
१७ सुभानु
१८ तारण १६ पार्थिव
२० व्यय
मध्यम संवत्सर
२१ सर्वजितु
२२ सर्वधारि
२३
विरोधि
२४ विकृति
२५ खर
२६ नंदन
२७
विजय
२८
जय
२६
मन्मथ
३० दुर्मुख
३१ हे विलंबि
३२ विलंवि
३३
विकारि
३४ शनिरि
३५ प्लव
३६. शुभकृतु
३७
३८
३६ विश्वावसु
Ya पराभव
शोभनकृतु
क्रोधि
४४ साधारण
४५ विरोधिकृतु
४६
परिधातु
૪૭
प्रमादित
४८
श्रानन्द
४६
राक्षस
५०
५१
५२
५३ सिद्धार्थि
नल
पिंगला
काल युक्ति
५४ रौद्रि
५५ दुर्मति
५६ दुंदुभि
५७ रुधिरोद्गारी
रक्ताक्षि
५८
५६ क्रोधन
६०
क्षय
अयनों के नाम
एक वर्ष में उत्तरायण दक्षिणायन ऐसे दो प्रयन होते हैं। स्थूलमान के अनुसार पौष मास से ज्येष्ठ मास तक सूर्य उत्तर की तरफ होने के कारण उत्तरायण कहते हैं | आषाढ़ मास से मगशिर तक सूर्य दक्षिण की तरफ संचार करने के कारण दक्षिणायन कहते हैं ।
ऋतु के नाम
चैत्र वैशाख वसंत ऋतु । आसोज कार्तिक शरद ऋतु । ज्येष्ठ प्राषाढ़ ग्रीष्म ऋतु । मगशिर पौष हेमन्त ऋतु । श्रावण भाद्रपद वर्षा ऋतु । माघफागुरण शिशिर ऋतु ।
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