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________________ धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपाद त्रिपादेषु कुम्भः पूर्वाभाद्रपदैकोत्तराभाद्रपदरेवत्यन्तं मीनः । अर्थ-इस प्रकार अश्विनी ४ पाद, भरणो ४ पाद, कृतिका एक पाद मिलकर मेष राशि होती है। कृतिका के शेष ३ पाद, रोहिणी ४ पाद, मृगशिरा के दो पाद मिलकर वृषभ राशि होती है। मृगशिरा के शेष २ पाद, आर्द्रा के ४ पाद, पुनर्वसु के ३ पाद मिलकर मिथुन राशि होती है। पुरा का जप १ पाद, नृपय के 6 पाद, आश्लेषा के ४ पाद मिलकर कर्क राशि होती है। मघा ४ पाद, पूर्वाफाल्गुणी ४ पाद और उत्तरा का १ पाद मिलकर सिंह राशि होती है। उत्तरा के शेष ३ पाद, हस्त के ४, चित्रा के दो चरण मिलकर कन्या राशि होती है। चित्रा के २ पाद, स्वाति के ४, विशाखा के ३ पाद मिलकर तुला राशि होतो है। विशाखा का शेष १ पाद, अनुराधा के ४ पाद, ज्येष्ठा के ४ पाद मिलकर वृश्चिक राशि होती है। • मूल के ४ पाद, पूर्वाषाढ़ के ४ पाद, उत्तरा का एक पाद मिलकर धन राशि होती है। उत्तरा के शेष ३ पाद, श्रवण के ४, धनिष्ठा के २ पाद मिलकर मकर राशि होती है। धनिष्ठा के क्षेत्र २ पाद, शातारा के ४ पाद, पूर्वाभाद्रपद के ३ पाद मिल कर कुम्भ राशि होती है। पूर्वाभाद्रपद का शेप १ पाद, उत्तराभाद्रपद के ४, रेवती के ४ पाद मिल कर मीन राशि होती है। प्रागे संवत्सर का नाम बतलाते हैं--
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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