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उदाहरण के लिये :---
महावीर इस नाम का पहला अक्षर 'म' है यह श्रवकहड़ा चक में मघा नक्षत्र के ४ अक्षरों में से पहला अक्षर होने के कारण भघा नक्षत्र का पहला चरण है ऐसा समझना चाहिये। इसी तरह 'म' पहला अक्षर युक्त मल्लिनाथ मणिभद्र इत्यादि नाम वाले जितने होते हैं वे सभी गधा नक्षत्र के पहले चरण वाले होते हैं ।
दूसरा उदाहरण:- महावीर का दूसरा जन्म नाम 'सम्मति' है । 'स' यह अक्षर शततारक के तीसरे चरण का तीसरा अक्षर होता है, इसलिए यह शततारका का तीसरा चरण हुआ ।
इसी तरह अन्य नामों के नक्षत्र भी जानने चाहिए ।
अवगड चक्र के हस्व अक्षर तथा दीर्घ अक्षर के विषय में विचार:--- अवगड की मूल उत्पत्ति में हस्वाक्षर उत्पन्न होने पर भी उच्चारण के समय में [ श्रवगड में कुछ दीर्घाक्षर कुछ ह्रस्वाक्षर होते हैं । ये दोनों एक ही होने के कारण प्रसंग के अनुसार ह्रस्व को दीर्घ और दीर्घ का ह्रस्व समझकर नक्षत्र चरण को बना लेना चाहिए ।
उदाहरण:--' इन्दुधर' शब्द का प्रथम अक्षर द' है इ श्रवगड चक्र में नहीं है । चक्र में "ई" अक्षर कृतिका के दूसरे चरण का हो गया । 'ईश्वर का भी यही नक्षत्र होगा । इम्री तरह शेष प्रक्षरों को भी समझ लेना चाहिए ।
संयुक्त अक्षर वाले नामों के नक्षत्र का ज्ञानः - श्रवगड चक्र में संयुक्त प्रक्षरों का उल्लेख नहीं है संयुक्त प्रक्षर वाले शब्द का कौन सा नक्षत्र समझा जाये ? इसका खुलासा इस प्रकार है कि:--
किसी मनुष्य का नाम प्रेमचन्द है इसका पहला अक्षर 'में' है यह 'पे' अक्षर में र् कार वर्ण मिलाने से बना है। तो मिले हुए र कार को छोड़कर पहले वर्ण का 'पे' अक्षर चित्रा नक्षत्र में है इस तरह 'प्रेमचन्द' नाम चित्रा नक्षत्र के पहले चरण का हो गया । इस तरह समझकर त्रिलोकनाथ, स्वयंप्रभु 'इत्यादि नामों के नक्षत्र जान लेना चाहिए। जैसा कि :--
यदि नाम्नि भवेद्वर्णो संयुक्ताक्षरलक्षणः । ग्राह्यस्तदादिमो वर्णो युक्तत्वं ब्रह्मयामले ॥
इसी तरह 'संयोगाक्षरजे नाम्ना ज्ञेयं तत्रादिमक्षर' इस तरह अन्य मुहूर्त मार्तंड इत्यादि ग्रन्थों में कहा है ।