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________________ ( १२३ ) शुभ नक्षत्र परिज्ञान : मघामृगशिरोहस्तः स्वातिम लानुराधयोः । रेवती रोहिणी चैत्रमुरारि त्रयाणि च ॥ श्रावाये च विवाहे च कन्यासम्वरणे तथा । वापये सर्ववीजानां गृहं ग्रामं प्रवेशयेत् ॥ पुष्याश्विनी तथा चित्राधनिष्ठा श्रवणं वसु । सर्वाणि शुभकार्याणिसिद्ध यन्तितेषु भेषुच ॥ भावार्थ - मघा मृगशिरा हस्त स्वाती मूल अनुराधा रेवती रोहणी तीनों उत्तरा, इन ग्यारह नक्षत्रों में कन्यादान विवाह बीज वपन इत्यादि कार्य करना चाहिए । इसी प्रकार ग्राम प्रवेश, गृह प्रवेश इत्यादि कार्य भी कर सकते हैं । इसी प्रकार से पुष्य अश्विनी चित्रा धनिष्ठा श्रवण पुनर्वसु इन नक्षत्रों में भी और सब शुभ कार्य किये जाते हैं किन्तु विवाह नहीं करना चाहिच । इन सत्रह नक्षत्रों को छोड़कर बाकी के नक्षत्र निकृष्ट हैं उनमें शुभ कार्य नहीं करने चाहिए | तथा जिस नक्षत्र पर ग्रहण लगा हो उस नक्षत्र में छः महीने तक विवाह नहीं करना चाहिए। और ग्रहण लगे हुए दिन से पहिले के तथा पीछे के सात सात दिन छोड़कर विवाह करना शुभ होता है । शुभ अशुभ योग और त्याज्य घटिका : प्रीति १ आयुष्मान् २ सौभाग्य ३ शोभन ४ सुकर्म प्रवृति ६ वृद्धि ७ व ८ हरण ६ सिद्धि १० वरियान ११ शिव १२ सिव १३ साध्य १४.. शुभ १५ शुक्ल ब्रह्म १७ इन्द्र १८ ये अठारह शुभ योग हैं। ये अपने नाम के अनुसार शुभ फल करते हैं। इनमें शुभ कार्य किये जाते हैं । विष्कम्भ १ अतिगण्ड: २ शूल ३ व्याघात ४ वज्र ५ व्यतिपात ६ परिघ ७ वैधृति ये नौ योग अशुभ हैं इनमें बैवृति, और व्यतीपात ये दोनों पूर्णरूप से दुर्योग हैं । इसलिए इनमें कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। शेष सात नक्षत्रों की सदोष घटिकाओं का त्याग करके कार्य करना चाहिए। वे घटिकायें इस प्रकार हैं- त्रिष्कम्भ योग में तीन घटिका शूल में पाँच घटिका, गण्ड और प्रति गण्ड में छः छः घटिका । व्याघात और वज्र योग में नो नौ घटिका । परिघ योग में ३० घटिका पूर्ण होने तक छोड़ देना चाहिए । अब शुभाशुभ करण को बतलाते हैं: --- वय, वालव, कौलव, तैतिल, गर्ग, वणिज, शकुनि ये सातों शुभकरण हैं इनमें शुभ कार्यं हमेशा करना चाहिए। भद्र चतुष्पाद नागवान और किंस्तुघ्न गण्ड
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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