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पम, गरुड कुमार की अढ़ाई पल्य, द्वीप कुमारों के दो पल्य, शेष कुमारों की डेढ़ रन्योपम होता है।
उत्तरेन्द्र की आयु साधिक सौ पल्य, इन्द्र, प्रतीन्द्र, लोकपाल, प्रायस्त्रिंशत् सामानिक इन पाँचों की आयु समान होती है। चमर और असुरेन्द्र की देवियों की भायु ढाई पल्योपम, वैरोचन की देवियों की आयु तीन पल्योपम, नागेन्द्र की देवियों की पल्प का पाठवाँ भाग, गरुड की देवियों की तीन करोड़ पूर्व प्रायु होती है । चमर वैरोचन गरुड़ तथा शेष इन्द्रों के अन्तरंग, मध्य, बाह्य भेद से तीन प्रकार के पारिषद देबों की प्रायु क्रमशः डेढ़ पल्य, तीन पल्य, पल्य का पाठवां भाग, तथा तीन करोड़ पूर्व प्रमित होती है । मध्य वालों की आयु हाई पल्य, दो पल्य का सोलहवां भाग, तीन करोड़ पूर्व तथा दो करोड़ वर्ष प्रायु होती है बाहर के देवों की आयु ढाई पल्य, पूर्व करोड़ का ३२ वां भाग तथा एक करोड़ पूर्व प्रमाण है । चमर वैरोचन के नाग, गरुड़, शेष, सेना नायक, प्रारम-रक्षक, डेढ़ पल्योपम, कोटि वर्ष तथा लाख वर्ष प्रमाण प्रायु वाले होते हैं । और उनके सेना नायक देव की ग्रायु अाधा पल्य, शताधिक पल्यार्ष, करोड़ वर्ष, लाख वर्ष तथा ५७ हजार वर्ष होती है।
ईरदुधनुगळकु । मार्ग व्यन्तरर्गमाज्योतिष्क ।गरियलुकेळे सेव ।
शरीरोच्छत्तिपंचवर्गमसुरामररोळ ॥५०॥ देवों के आहार तथा उच्छ्वास का नियम बतलाते हैं --
मनदोळ सासिरवर्ष । कनतिशयासनमनो मेनेनुवस्सु यिव ॥ दिनपंचध्नत्रितयक्के ।
सुखमं पोगळ वेनेनसुरामररा ॥५१॥ अर्थ-चार और वैरोचन एक हजार वर्ष के बाद एक बार आहार ग्रहण करते हैं और उनके एक श्वासोच्छवास लेने में १५ दिन लग जाते हैं। उनके सुखों का वैभव कहाँ तक वर्णन करें ?
जलप्रभ अमितगति का आहार क्रम से साड़े बारह दिन तथा साहे सात दिन पर्यन्त होता है। उच्छवास काल साढ़े बारह मुहूर्त, और साढ़े सात मुहूर्त होता है । व्यन्तरामर पांच दिन में एक बार मानसिक ग्राहार और पांच मुहूर्त में एक बार श्वासोच्छवास लेते हैं।