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शर्स १११ युग २, युगल २ चतुर्गुण बसु ३२, व्रत ५, पुर ३, मुनि हतगंत नक्षत्र गरण कृतिका के पहले होते हैं ।
इन २८ स्थानों से पंका शकटाकृति, हरिण के शिर द्वीप, तोरण, छत्र, बल्मीक, गोमूत्र, शर, युग, हस्त, उत्पल, दीप, व्यास पीठ, हार, बीरणा, शृङ्ग, वृvिes, दुष्कृत, पापी, हरिकुभ, गजकुम्भ, मुरज, उड़ने वाले पक्षी, शेन, गज
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पूर्वं गात्र, अपरत्र, द्रोण, अश्व मुख, चुल्लिपाषाण, इत्यादि के समान होते हैं ।
ज्योतिष्क देवों की आयु का प्रमाण
चन्द्रमा की आयु १००००० लाख वर्ष अधिक पत्य है ।
सूर्य की १००० हजार वर्षं अधिक पल्य ग्रायु है ।
. शुक्र की १०० वर्ष अधिक एक पत्य आयु है । बृहस्पति की १ पल्य ग्रायु है ।
बुध अंगारक और शनि की आधा पल्य आयु है ।
तारा की उत्कृष्ट प्राधु पत्यका चौथा भाग हैं और जघन्य आठवाँ
भाग हूँ ।
इस प्रकार ज्योतिषी देवों की आयु का प्रमाण है और देवियों की आयु अपने अपने देवो से आधी साधी होती है ।
सबसे कनिष्ठ देवों की ३२ देवियां होती हैं ।
पांच प्रकार के ज्योतिषी देवों के विमान गणनातीत ( श्रसंख्यात ) हैं
शत युग षट् पंचाश-- ।
प्रतरांगुल वर्गगुरिणतसंख्यात ॥
गाथा:
हृत प्रतरप्रमितंगळू ।
गत रंगल जिनभवनमित्र मसंख्यातंगळ ॥
ans ari गुरकविहिदपद रसंख भागमिदे । जोइसजिरिंग दगेहे गरगरणातीदे रामसामि || अब भवनवासी देवों की आयु आदि बतलाते हैं
परमायुष्यं च्यं ।
तरसुर पल्योपमं कु
मार्गे दशगुरण ।
रुष सहस्र जयमतुत्कृष्ट ||
असुर कुमार की आयु एक सागरोपम, नाग कुमार देवां की तीन पल्यो- .