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________________ (१०) प्राकाश भागों से भाग देने पर अभिजितादि नक्षत्रों में रहने वाले सूर्य और चन्द्रमा के मुहर्त हो जाते हैं । सो इस प्रकार है-चन्द्रमा अभिजित नक्षत्र में रहने के समय में मुहूर्त के ३. अधिक नौ मुहूर्त तथा जघन्य नक्षत्रों में १५ मुहूर्त, मध्यम में तीस मुहूर्त, उत्कृष्ट में ४५ मुहूर्त रहते हैं। सूर्य-अभिजित नक्षत्र में चार दिन छ: मुहूर्त, जघन्य नक्षत्र में २१ मुहूर्त अधिक छः दिन, मध्यम नक्षत्र में बारह मुहर्त अधिक तेरह दिन, उत्कृष्ट नक्षत्र में तीन मुहर्त से ज्यादा वश दिन । ऐसे अभिजितादि सब को मिलाकर १८३ दिन होते हैं । ये एक अयन के दिन हुए । अयन दो होते हैं एक दक्षिणायन दूसरा उत्तरायण । ये दोनों अयन मिलकर एक सम्वत्सर होता है, पांच सम्वत्सरों का एक युग होता है। थावरण मास की कृष्णा प्रतिपदा के दिन अभिजित नक्षत्र में चन्द्रमा के होने पर युग का प्रारम्भ होता है और आषाढ़ सुदी पूर्णमासी को युग समाप्त होता है। अब नक्षत्रों के रहने का स्थान बतलाते हैं अभिजित आदि ह नक्षत्र चन्द्रमा की पहली वीथी में और स्वाति से फाल्गुणी तक चन्द्रमा की दूसरी वीथीमें रहते हैं । मघा और पुनर्वसु तीसरी वीथी में होते हैं । रोहिणी और चित्रा सातवीं वीथी में होते हैं। छठी, पाठवीं, दशमी, ग्यारहवीं पोथी में कृतिका है। विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा ये १२ वीं १३ वी १४ वीं वीथी में यथाक्रम से रहते हैं । शेष ८ नक्षत्र चन्द्रमा की १५ बी वीथी में रहते हैं, इस प्रकार पाठ वीथी में नक्षत्र रहते हैं, सात में नहीं। खरबारणहुताशन चं-। दरसाग्नि षडब्धि नयननयं पंचमुमं ॥ हरिणांकहिम गुगतिस्तु । सुरनिधिजलनिधि पयोधिशिखिहुतवहमं ॥४६॥ तमु रुद्रसमन्वित। शतमु युगयुगळमु चतुर्गणवसुबु॥ घृतततियुपुरमु मुनि-। हतगति नक्षत्र कृत्तिकाल्यामोलिक ॥४७॥ स्वर ६, बारण ५, हुताशन ३, चन्द्र १, रस ६, अग्नि ३, षडब्धि ६, नयन ४, नय २, पंचक ५, प्रिणांक १, हिम १, गति ४, ऋतु ६, सुर ३, निषि, जल निधि ४. पयोधि ४, शिखिहुत ३ , ब्रह्म ३, व्रत ५, रुद्र समन्वित
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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