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( १११) जिन बिम्ब प्रत्येक दिशा में विराजमान हैं। १ किम्पुरुष, २ किन्नर, ३ हृदयंगम, ४ रूपपालि, ५ किन्नर किम्पुरुष, ६ अनिन्दित, ७ मनोरम, ८ किन्नरोत्तर, १ रतिप्रिय १० ज्येष्ठ ये किन्नरों के १० भेद हैं। १ पुरुष, २ पुरुषोत्तम, ३ सत्पुरुष, ४ महापुरुष, ५ पुरुषप्रभ, म पनि पुरुष, इ. समर. माद मनाश और १० यशोवन्त ये दस भेद किम्पुरुष देषों के हैं।
महोरग में भुजग, भुजंगशाली, महाकाय, स्कन्धशाली, मनोहरा, प्रतिकाय, अशनिज, महेश्वर्य, गम्भीर और प्रियदर्श ऐसे दस भेद होते हैं ।
हाहानाद, हुहु संज्ञक, नारद, तुम्बुरु, वासव, गंधर्व, महास्वर, गीतरति, गीतयश और दैवत ये गंधयों के दस भेद होते हैं।।
यक्षों में-१ मरिणभद्र, २ पूर्णभद्र, ३ शलभद्र, ४ मनोभद्र, ५ भद्रक, ६ सुभद्र, ७ सर्वभद्र, ८ मानुष, ६ धनपाल, १० सुरूप यक्ष, ११ यक्षोत्तम और १२ मनोहर ऐसे बारह भेद होते हैं।
राक्षसों में-१ भीम, २ महाभीम, ३ विघ्न, ४ विनायक, ५ उदक रक्षक, ६ राक्षस राक्षस और ७ ब्रह्मराक्षस ऐसे सात भेद होते हैं ।
भूत जातियों में-~~-१ सुरूप, २ अतिरूप, ३ भूतोत्तम, ४ प्रतिभूत, ५ महाभूत, ६ प्रतिच्छन्न और ७ आकाशभूत ऐसे सात भेद होते हैं।
पिशाचकुल में-१ कूष्माण्ड, २ यक्षेश्वर, ३ राक्षस, ४ संमोहन, ५ तारक ६ अशुचि, ८ महाकाल, ६ शुचि, १० शतालक, ११ देव, १२ महादेव, १३ तुष्णिक और १४ प्रवचन ऐसे नौदह भेद होते हैं।
किन्नर कुलके-किनर और किंपुरुष, किंपुरुष कुल के सत्पुरुष और महापुरुष । महोरम के अतिकाय और महाकाय, गन्धर्षों के गीतरति और गोतयश, यक्षों में मरिणभद्र और पूर्णभद्र, राक्षसों के भीम और महाभीम, भूत जातीय देवों के स्वरूप और प्रतिरूप, पिशाचों के काल और महाकाल इस प्रकार व्यन्तर देवों में सोलह प्रतीन्द्रों सहित ३२ इन्द्र होते हैं। इन युगलों में से प्रथम-प्रथम इन्द्र दक्षिणेन्द्र और दुसरे-दूसरे उत्तरेन्द्र कहलाते हैं।
इन इन्द्रों की भूमियाँ:
अंजनक, वनधातुक, सुवर्ण, मरिणशिला, वन, रजत, इंगुलिक और हरताल ये पाठ भूमियां इन्द्रों की होती हैं। इनके दक्षिण और उत्तर तथा मध्य भाग में पाँच २ नगर हैं । ये सब नगर द्वीपरूप हैं। इन्हीं द्वीपों में उपयुक्त इन्द्रों की वल्लभा देधियों के ८४००० नगर हैं ! अवशिष्ट देवों के नगर असंख्यात द्वीप समुद्रों में हैं । चित्रा पृथ्वी के एक हाथ ऊपर नीचउपपाद देव हैं। वहाँ से १०००० हाथ अपर दिग्वासी अन्तनिवासी और कृष्माण्ड देव रहते हैं, वहाँ .