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________________ से २०००० हाथ ऊपर उतान्न, अनुत्पन्न, प्रमाण, गन्धर्व, महागन्धर्व के भुंजग, प्रीतिकर और प्राकाशीपपन्न होते हैं। इनके ग्रावास क्रम से दस दस, बीस, बोस, बीस, बीस, वीस, बीस, वीस तथा २० हजार हाथ ऊपर रहते हैं । अब उनको अायु कम से तलाते हैं: उनको अायु क्रम रो दस, बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी हजार वर्ष की होती है। उससे प्रागे पल्प के आठवें भाग, दो पल्य के चतुर्भाग और त्रिपल्य के प्राधे भाग प्रमाण यथाक्रम भायु होती है। ( कामड़ो छन्द) त्रिविधं व्यंन्तरनिलयं । भवनपुरावास भवन भेददिनिन्न । तवनुक्रमविद से। दनु मध्या दिशेगधो भागकु ॥४०॥ ... भवनवासियों में प्रसुर कुमार को छोड़कर शेष कुमारों में किन हो के । भवन, किसी के भवनपुर, किसी के भवनपुरावास ऐसे तीन प्रकार के निलय होते हैं। व्यन्तरावास असंख्यात हैं उन असंख्यातों में से एक का विवरण लिखते है शत गुरिणत योजनत्रय। त्रितहतसख्यात रूपभाजितलोक ।। प्रतरप्रमितं व्यन्तर-। ततिय जिनायतन मिन्तसंख्यातंगळ ॥४१॥ तिणिसय जोयरणार कविहिवपदरस्ससंखभागनिदि । भम्मारणं जिनगेहे गाणनातीदे गमसामी ॥१७॥ पंचविधज्योतिष्काः ॥४॥ अर्थ-चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, प्रकीर्णक और तारक यह ज्योतिषियों के पांच भेद हैं। जितने चन्द्र हैं, उतने ही सूर्य हैं और एक-एक चन्द्र के प्रति शनैश्चर इत्यादिक ८८ ग्रह तथा कृतिकादि २८ नक्षत्र हैं। तारकादि विमानों की संख्या ६६६७५०००००००००००००० (छयासठ हजार, नौ सौ पचहत्तर कोड़ाकोड़ी) हो जाती है । चित्रा पृथ्वी के ऊपर ७६० योजन ऊपर जाने के बाद प्रकीर्णक तारक विमान हैं। वहां से १० योजन
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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