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________________ (१००) सुगेयेरेसि कुओबेरमुव । नेगळ्तेयिं मनमनून सुखनम् पडेगुम् ॥३९॥ बगेदल्लिगे बगेवागळे । बगेदन्दव वाहनंगळागे विळासम् ॥ बगेगोळे सुरपरनोय । बंगेयिदं शीघ्रमागि वाहनदेवर् ॥४०॥ अर्थ- स्वर्ग लोक के देव स्वगीय देवांगनाओं के बिंबाधर अर्थात् बिम्ब फल की लालिमा के समान रक्त वर्ण अधरों के रस का पान करते हुये, उनके अनुपम सौंदर्य का नेत्रों से निरीक्षण करते हुये, पैरों में पहिनी हुई नूपुर को सुमधुर झंकार कानों से सुनते हुये, सुगन्धित हसन्मुख को मुगंध लेते हुये तथा कुच प्रदेश का स्पर्श करते हुए, इन्द्रिय-जन्य अनुपम सुख का अनुभव करते हुए प्रानन्द से अपने समय को बिताते हैं ॥३८-३६॥ कल्पवासी देवों की जहाँ आने-जाने की इच्छा होती है वहां उनकी आशा से वाहन देयों को हाथी-घोड़ा प्रादि वाहन बनकर जाना पड़ता है ॥४०॥ . अब इनके भेद बतलाने के लिये सूत्र कहते हैं: भवनवासिनो दाविधाः ॥२॥ असुर, नाग, सुपर्ण, उपधि, स्तनित, दिक्, अग्नि, वायु, द्वीप और विद्युत् कुमार ऐसे दश प्रकार के भवनवासी देव हैं। इन भवनवासियों में से असुर कुमारों के चमर और वैरोचन, नागकुमार के भूतानन्द और धरणानन्द, सुपर्ण कुमारों के वेणु और वेणुधर, द्वीप कुमारों के पूर्ण और वशिष्ट, उदधि कुमारों के जल कान्त और जल प्रभ, विद्युत् कुमारों के हरिषेण और हरिकान्त, स्तनित कुमारों के घोष और महाघोष, दिक् कुमारों के अमितगति और अमितवाहन, अग्निकुमारों के अग्नि-शिख और अग्निवाहन, वात कुमारों के बैलम्भ और प्रभजन ऐसे बीस इन्द्र प्रतीन्द्र है लोकपाल, प्रायस्त्रिंशत् सामानिक, अंगरक्षक, पारिषदत्रय, अनीक, प्रकीर्णक, भाभियोग्य और किल्विष ऐसे भवनवासी और कल्पवासी देवों के भेद होते हैं । व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में श्रायस्त्रिंशत् और लोकपाल नहीं होते । चमरेंद्र सौधर्म के साथ, वैरोचन ईशानेन्द्र के साथ, भूतानन्द वेणु के साथ, धरणानन्द वेणुधारी के साथ स्वभाव से ही परस्पर ईर्षा करते हैं।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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