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(१०) चररळ युनू बिल्लु निडियर् । परमस्थिति पूर्व कोटि मत्तामहियोळ ॥ परसमयमिल्ल धर्मे
श्वरि जिनधर्म मोवे बेळगुतिक्कु ॥३०॥
अर्थ:--यहाँ के मनुष्य चरमशरीरी होने से, दुर्धर तपस्या की शक्ति होने से और उस क्षेत्र के मनुष्य हमेशा सम्यग्दृष्टि होने की प्रापेक्षा विदेही रहते हैं । इसलिए उस क्षेत्र का नाम 'विदेह' सार्थक है ॥२६॥
उनके शरीर की ऊंचाई ५०० धनुष होती है। प्रायु एक करोड़ पूर्व होती है। उस भूमि में पर-समय की चर्चा क्षण भर भी नहीं होती है। हमेशा धर्म चर्चा के सिवाय अन्य पर आदि की चर्चा नहीं होती है। वहां हमेशा हय. समय जैन धर्म की प्रभावना चारों ओर फैली रहती है।
___ उन अवस्थित कर्म भूमियों में दुषमा सुषमा नाम का एक ही काल एक स्वरूप से प्रवर्तता है । और वहाँ चौदह गुरगास्थान, दो जीव समास, दस (१०) प्रारण, ६ पर्याप्ति, ४ संज्ञा, मनुष्य गति, अस कायिक, तेरह योग, तीन वेद, कषाय चार, ज्ञान आठ, सात संयम, चार दर्शन, लेश्या ६, भव्य प्रभव्य, छ: प्रकार के सम्यक्त्व मार्गणा, संजी, आहारक, अनाहारक, १२ उपयोग, सामान्य रूप से विदेह क्षेत्र के मनुष्यों को होते हैं।
बल्लि पसविळदिडामर। मल्लिबरं मारि पेरखुमाकुलतेगळं॥ तल्लि पोरगिलेपनवनिय -
रल्लि षड़शमने कोंडु परि पलिसुबर ॥३१॥
अर्थ-उस क्षेत्रवर्ती मनुष्यों को उपवास मादि करने में कष्ट अनुभव नहीं होता, प्राकुलता नहीं होती । वहां अन्य कोई झूठे आडंबरादि मायाचार की क्रिया नहीं है। वहां हमेशा देव लोकों का आवागमन होता है। वहां के मनुष्यों में पाकुलता, महामारी या अन्य कोई और रोग नहीं होता। वहां अनावृष्टि, अतिवृष्टि नहीं होती । उस क्षेत्र के लोग हमेशा दान, देवपूजा, संयम, गुरुपूजा, तप, स्वाध्याय इन छः क्रियायों में लीन रहते हैं।
: 'उस क्षेत्र में कुबेर के समान धनवान देश्य, सरस्वती के समान विद्या में चतुर, कामदेव के समाम सुन्दर रूप वाले, देवेन्द्र के समान सर्व सुख भोगने वाले । तीर्थकर की माता के समान शीलवती स्त्रियां, रति, तिलोत्तमा से भी अधिक रूप वाली युवतियां, राजा श्रेयांस के समान वानी, चारुदत्त से बढ़कर त्यागीः ।