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( १०१ )
[ कानड़ी छन्द ]
कुरूभवशाल मध्य दो ।
रडु ल कुनदि गळिक्कलं गळोळ दि ॥ करि गिरि यर डेर डप्पयु विस । निरतिशय व्यंतरावतिंगळ ॥
देवकुरु भद्रशाल के मध्य में दो कुलनदी होकर वहीं उस में दिग्गिर दो दो होते हैं । उसमें निरतिशय व्यंतर असित (काले ) रहते हैं । दिग्गज पर्वत की लम्बाई तथा चौड़ाई १०० योजन है । उसके मुख का विस्तार ५० योजन है । जम्बू द्वीपवर्ती ८ दिग्गज पर्वतों के नाम पद्मोत्तर, नील, स्वस्तिक, अंजन, कुमुद, पलास, अवतंस और रोचन हैं। उनको पांच से गुणा करने से ४० दिग्गज गिरि होते हैं ।
शतं वक्षार पर्वताः ॥ १६॥
अर्थात् - १०० वक्षार पर्वत हैं ! मेरु पर्वत की ईशान दिशा से ५०० योजन दूर विभंग नदी हैं । तप्तजल, मत्तजल, उन्मत्तजल ये सीन नदियां हैं । क्षारोधि, शिरोधि, स्रोतवाहिनी ये तीन नदियां हैं। गंभीर मालिनी, फेनमालिनी कर्मि मालिनी इत्यादि १२ नदियां हैं। इनको पांच गुणा करने से ६० विभंग नदियां होती हैं ।
१ योजन लम्बा चौड़ा माल्यवन्त तथा महासौमनस, विद्युत्प्रभ, गन्धमादन ये चार गजदन्त पर्वत हैं। मेरु पर्वत के पूर्व भद्रशाल वन की वेदिका से पूर्व सीता नदी के पश्चिम से लेकर चित्रकूट, पद्मकूट, नलिन कूट एक शैल; ये चारों २६२२ योजन विस्तार वाले हैं। देवारण्य से पश्चिम सोता नदी से दक्षिण में चित्रकूट, वैश्रवरकूट, अंजनकूट श्रात्माजन कूट ये चार मेरु पर्वत के पश्चिम भद्रशाल से पश्चिम सीतोदा से दक्षिण में षड्जवन्त विचटवन्त, श्राशीविष, सुखावह ये चार, भूतारण्य से पूर्व दिशा में सीता नदी के उत्तर में हैं। चन्द्रमाला, सूर्यमाला नागमाला, देवमाला ये चार वक्षार वाले गजदन्त पर्वत २० हैं । इसको पाँच से गुणा करने से १०० वक्षार पर्वत होते हैं ।
षष्ठि विभंगानद्यः ॥ १७॥
अर्थ - ६० विभंग नदी हैं ।
६० विभंग नदियों का विवरण बतलाते हैं । पहिले कहे हुये वक्षार पर्वत के समीप रहने वाली १२५ योजन विस्तार वाली गृहवती, द्रववती, पंकवती ये दिभंग नदियां हैं । तप्तजल, उन्मत्तजल, मत्तजल में तीन नदियां हैं । क्षारोषि