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! विशतिर्यमकगिरयः ॥१३॥ अर्थ-बोस यमक पर्वत हैं ।
___ कनाड़ी छन्द वरनील निषध पार्श्व दो। ळे रकुलामपि पलिगमाता-॥ बेरडेरडी यमक नामक-। गिरिपति गळ व्यंतरामरा यासंगळ ॥
अर्थ---नील, निषध, पर्वत के पावं में दो कलगिरि हैं। बाकी में ये दो-दो यमक नाम के गिरिपति हैं । वहां व्यंतरामर का वास है।
यमक, मेघ, चित्रा, विविश्रा, ये उन यमक गिरियों के नाम हैं। इनकी लम्बाई, चौड़ाई १००० योजन, मुख का विस्तार ५०० योजन है । उनको पांच गुणा करने से २० यमक गिरि होते हैं।
सहस्रकनकगिरयः ॥१४॥ अथं-१७०० कनकगिरि हैं। अब १००० सुवर्ण के पर्वतों (कनकगिरियों) का वर्णन करते हैं ।
कनाड़ी छन्द कुरुभद्रशाल मध्य दो। ळे रडुकुलनदि गळे दु ऐवागे सरो॥ वरमिप्पत्तं देवादा। सरंगळाकेल वोळ सेये कनकाद्विगळे ॥ .
कुल भद्रशाला के दो, कुलनदी पांच-पांच होकर सरोवर २५-२५ होकर मह कनकाद्रि गिरि होती हैं। उत्तर कुरू में तथा पूर्व भद्रशाल वन में देवकुरू में तथा पश्चिम भद्रशाल वन में ५-५ सरोवर हैं उनके तट पर ५, ५ पर्वत होने से २०० होते हैं । उसको पांच गुना करने से ५ मेरुषों के १००० सुवर्ण पर्वत
होते हैं। उनकी लम्बाई १०० योजन होती है। उनके मुख का विस्तार ५० . योजन होता है। उनके शिखर में शुक्ल वर्ण के व्यंतर देव होते हैं ।
चत्वारिंशत् दिग्गज पर्वताः ॥१५॥ अर्थ-४० दिग्गज पर्वत हैं। भग ४० दिग्गज पर्वतों का विवरण बताते हैं।