SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा हेममुगनपनीयाकमसोवे ळ पर्यरजतहेममया। इगिदुग चउ चउ बुगियिगि समतुगाहोन्तिहु कमेण ॥११॥ अर्थात्-इन हिमवत् प्रादि ६ कुल पर्वतों को ५ गुना करने से ३० संख्या होती है । वे सुवर्ण आदि वर्ण वाले हैं । ४०० योजन ऊंचाई १००० योजन विस्तार बाला है। ४ लाख योजन लम्बा धातकी खंड तथा ८ लाख योजन विस्तार बाला पुष्कराई है। उसके दक्षिण तथा उत्तर में एक-एक ईष्वाकार पर्वत है। लवण और कालोदधि तक तथा कालोदधि से इस मानुषोत्तर पर्वत तक रहने वाले ये चार इष्वाकार हैं। इनमें ३० कुल गिरि मिलकर कुल ३४ वर्षधर पर्वत होते हैं। . त्रिंशत्युत्तरशत सरोवराः॥१०॥ अर्थ-१३० सरोवर हैं। पद्म, महापद्म, तिगंछ, केसरी, पुण्डरीक, महा पुण्डरीक नामक ६ सरोवर, हिमवत आदि ६ कुल पर्वतों के उपर क्रमश: है। प्रथम सरोवर पद्म की लम्बाई १००० योजन है । विष्कंभ (चौड़ाई) ५०० योजन है। और १० योजन गहरा है । उसमें (कमल)पुष्करका विष्कंभ १योजन है । उसकी कणिका १ कोस प्रमाण है, पद्म ह्रद से दुगुना महापद्म और उससे दुगुना तिगंछ ह्रद है केशरी और तिगंछ एक समान हैं और उससे आगे ह्रद क्रमश: प्राधे-आधे विस्तारवाले हैं। करिणका पीले रंग की है । उस करिणका में पंच रत्नखचित एक-एक प्रासाद है । उसके समीप में सामानिक, पारिषद्, आत्म रक्षकादि देव परिवार सहित रहते हैं। सौधर्म, ईशान, इन्द्र की आज्ञाकारिणी देवो उन प्रासादों में रहती हैं और जिनमाता के गर्भशोधन क्रिया के समय में वे आती हैं। पल्योपम आयु प्रमाण वाली वे श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी नामक देवियां क्रमश: उन सरोवरों के कमल प्रासादों में रहती हैं। उत्तर कुरु पूर्व भद्रशाल वन में समान नाम वाले सीता नदी के पास १००० योजन लम्बाई वाले ५०० योजन चौड़ाई वाले हैं। नीन उत्तरकुरु, चन्द्रिका, ऐरावत, मालवन्त, नामक पांच ह्रद हैं । पश्चिम भद्रशाल वन में समान नाम वाले सीता, सीतोदा, नवी के पास पहले कहे हुये पायाम और विस्तार से युक्त निषध, देवकुरु, सुर, सुरा, सुलसा, विद्युत नामक ५ सरोवर हैं, इसी प्रकार १० सरोवर देवकूर है। ऐसे २० सरोवर के पद्म प्रासाद के अन्दर नाग कुमारियाँ और उनके परिवार
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy