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मिलकर १,४०,१२० वृक्ष होते हैं । अब आगे कहे जाने वाले पीठ के ऊपर प्राधे योजन चौड़ाई बाली और सदा काँपने बाली मरकत मरिण-मय दो योजन सुरक्षित वनमय ८ योजन विस्तार बाली तथा अर्ध योजन चौड़ाई संयुक्त ४ महा शाला है । अनेक रत्नमयी शाखाएं हैं। उसके ऊपर कमल पुष्प है मृदंग आकार के फल पृथिवी को सार भूत बनाने वाले हैं । १० योजन ऊंचाई ६ योजन मध्यम विस्तार वाले ४ योजन अन विस्तार संयुक्त उत्तर कुल गिरि के समीप शाखा में १ कोश विस्तृत जिन मंदिर है । बाकी शाखा में लक्ष कुल के आदर अनादर आवास है । इस जंबू वृक्ष के परिवार वृक्ष सभी अर्ध प्रमाण वाले होते हैं ।
शाल्मलयोपि ॥८॥
शाल्मलि वृक्ष का रूम्यमय स्थल है इसका विवरण पहिले कहे हुए जंबू वृक्ष के समान है यह सीतोदा के पश्चिम तट के निषध पर्वत के समीप, मंदर के नैऋत्य दिशा के देवकुरू में है। शाल्मली वृक्ष की परिवार संख्या १ लाख ४० हजार ११६ है। मुख्य शाल्मली के दक्षिण शाखा में जिन मन्दिर है। शेष ३ शाखा में वेणु धारियों के आवास स्थान है ।
कानड़ी श्लोक हेमाचल दीशान दो ळा मंदर गिरिय नरूतिय विसेयोळ जं । बू मही रूहद शाल्मलि। भूमि जमु कुरुमही तळंग ळोळेसगु॥२८॥
चतुस्त्रिशद्वर्षधर पर्वताः ॥६॥ अर्थ----ौंतीस कुल गिरि है ।
भरतादि क्षेत्रों का विभाग करने वाले हेम, अर्जुन, तपनीय, वैडूर्य, रजत, हेममय ६ कुलगिरि हैं । मरिण विचित्र पाव वाले मूल उपरि में समान विस्तार वाले हैं। सिद्ध आयतन प्रादि क्लटों और किलों से सुशोभित होकर हिमवन्त, महाहिमवन्त, निषध, नील रूक्मि, शिखरी नामवाले वे कुलाचल पर्वत हैं । हिमवान पर्वत की ऊंचाई १०० योजन, गहराई २५ योजन, विस्तार (मोटाई) १०५२१३ योजन है । निषध पर्वत तक विस्तार दुगुना-दुगुना है। निषध के समान नीलाद्रि है उसके आगे उत्सेध (लम्बाई) प्रादि आधी-प्राधी है।