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(१४ ) हैं । ५०० योजन दूरी पर ५० योजन विस्तार वाली दिशानों के बीच में एक गोल आंखवाले, कर्ण आवरण अर्थात् लम्बे कान वाले, शशक कर्ण वाले तथा शष्कुली कर्ण वाले मनुष्य होते हैं।
५५० योजन की दरी पर ५० योजन विस्तार वाले अन्तर्वीपों में सिंह . के मुखवाले, अश्वमुख वाले, श्वान मुख वाले, महिष मुख वाले, बराह मुख वाले, ध्यान मुख, चूक मुख, पिकमुख वाले मनुष्य होते हैं तत्पश्चात् ६०० योजन की दूरी पर २५ योजन विस्तार वाले कृषि द्वीपों में मछली मुख वाले, कृष्ण मुख वाले मनुष्य हिमबन्त पर्वत के पूर्व पश्चिम समुद्र में होते हैं । मेघ मुख समान, गोमुख समान मनुष्य भरत के विजयाई पर्वत के पूर्वापर समुद्र में होते हैं । मेघ मुख वाले विद्य प्रमुख मनुष्य शिखरी पर्वत के पूर्वा पर समुद्र में होतें हैं । ऐरावत क्षेत्र के बिजयार्द्ध पर्वत के पूर्व पश्चिमी समुद्र के द्वीपों में दर्पण मुख और गजमुख वाले मनुष्य होते हैं इन सबके शरीर की ऊंचाई दो हजार धनुष प्रमाण और एक पल्योपम आयु है ।
ये चौबीस कुभोगभूमि कालोदधि के दोनों ओर तथा पुष्कर समुद्र के एक ओर इस तरह तीन जगह में होती हैं। इनके ९६ पर्वतों के यही नाम हैं। उसी में रोरुग पर्वत की विशाल गुफा में रहकर नाना प्रकार के रुचिकर पाषाण खंड तथा शर्करा के समान स्वादिष्ट रेत को और केले के पत्ते नारियल नारंगी आदि नाना वृक्षों के पके फलों को खाकर तथा वापीकूप सरोवर, दीपिका के क्षीर, घृतइक्षु रस को पीकर जीते रहते हैं । इनके जीने का समय एक पल्योपम होता है । कुभोगभूमि में उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारगर हैं । कुपात्र को दान देना, दान देकर रोना, दान देने वाले को देकर उनसे घृणा करना तथा दान जबरदस्ती देना या दूसरे के दबाव से देना, या अनेक प्रकार के प्रार्तध्यान, रौद्रध्यान से दान देना या अन्याय से द्रव्य उपार्जन कर दान देना, सप्तव्यसन सहित दान देना या किसी प्रेम से दान देना या मंत्र कार्यादिक से दान देना या सुतक पातक आदि के समय दान देना या रजस्वला से दान दिलाना, भावशुद्धि रहित दान देना प्रादि या जाति कुलादि के घमंड से दान देना, या जाति संकर प्रादि दोषों से युक्त होकर दान देना तथा कुत्सित भेष धारी, मायावी जिन लिंग धारी, ज्योतिष मंत्र तंत्र वाद, दातृ वाद, कन्या बाद, वैद्य विद्या से जीवन करने वाले, संघ को छोड़कर एकाकी रहने वाले को, या दुराचारी को, या कषायोद्रेक से संघ में कलह करने वाले प्रतादि भगवान में निर्मल भक्ति न रखने वाले को, मौन को छोड़ भोजन