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करने वाले इत्यादि को दान देने से कुभोग भूमियों में उत्पन्न होते हैं । कुभोग भूमि के मनुष्य स्वभाव से मंद कषायी होने से स्त्री पुरुष मिथुन देव गति को जाते | वहां से मिथ्यादृष्टि जीव भवन त्रिक में तथा सम्यग्दृष्टि जीव सौधर्म ईशान में उत्पन्न होते हैं ।
सूत्रः---
पंच मन्दारगिरयः ॥ ६॥
अर्थ :- जम्बू द्वीप में १, धातकी खंड द्वीप के पूर्व पश्चिम दिशा मे एक एक, पुष्करा द्वीप के पूर्व पश्चिम में एक-एक इस सरह ५ मेरु पर्वत हैं । असंख्यात द्वीप समुद्र के बीच में जम्बू वृक्ष उपलक्षित जम्बू द्वीप के बीच भाग में, जैसे बीच में कोई स्तंभ हो, इस प्रकार पद्म कणिका के समान सुदर्शन मेरु है उसका परिमाण इस प्रकार है ।
( कनड़ी पद्य )
नव नबति दर्शकम । नवय बदि मडिसि पंच शतयोजनदि । दव निर दोडिसि मूलदो । ग्रविभागं व्यास माळके तगिरि बरवा |
सुमेरु पर्वत की ऊंचाई ६६,००० हजार योजन भूतल से है । चित्रा भूमि में १००० योजन है। इस प्रकार कुल एक लाख योजन हैं । मूल में मेरू पर्वत का बिस्तार ६०,००० योजन प्रमाण तथा कैंपर ६००० योजन प्रमारग है ।
गाथा
मेरू विदेहमज्यावरण उदिवहि क्क यो जरण सहस्सा । उदयभूमुहवास उवरूवरिगण चउक्कजुदा ॥ १०॥
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वह सुमेरु पर्वत सुवर्णं वर्ण है, उसमें जामुन के रंग समान वैडूर्य मरिण मय प्रत्येक दिशा में चार चार प्रकृत्रिम जिन भवन सहित ऊपर ऊपर भद्रशाल नन्दन, सौमनस, तथा पांडुक बन हैं । पाण्डुक वन में ईशान आदि विदिग्विभाग में प्रतिष्ठित चार पांडुक शिलाऐं हैं पूर्वापर दक्षिणोत्तर आयत हैं। उनका आकार आधे चन्द्रमा के समान हैं। कांचन, रूप्य, तपनीय तथा रुधिर समान लाल उनकी प्रभा है । पांडुक शिला १०० योजन लम्बी है । ५० योजन चौड़ी तथा ८ योजन ऊंची हैं। उन पांडुक शिलाओं के पूर्व दिशा के श्रभिमुख तीन पीठिका मय सिंहासन हैं तीर्थंकर का जन्माभिषेक सौधर्म ईशान इन्द्र उन ही सिंहासनों पर करते हैं। भरत, पश्चिम विदेह, ऐरावत, पूर्व विदेह के तीर्थंकरों का अभिषेक उन पर होता है। भगवान के जन्माभिषेक के जल से पवित्र किया हुआ पांडुक, पांडु कम्बल, रक्त कम्बल, प्रतिरिक्त कम्बलनामक सुन्दर चार शिलाऐं हैं । वहां