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मुंह में जबरन देता है। इसी प्रकार तुमने जो मद्य पान करके सुख माना था पब यह पीवो, ऐसा कह कर गरम गरम पिघले लोह को उस के मुंह में देता है तथा सिर पर डालता है । किंच दूसरे की स्त्री को खूबसूरत (सुन्दर) समझ कर उसके साथ में बलात्कार किया था, अब यह देखो कैसी सुन्दर है ऐसा कह कर लोहे की जलती पूतली के साथ में उसका आलिङ्गन करवाता है । तब उसका शरीर जलने लगता है और मूर्छा खाकर गिर पड़ता है। फिर क्षण भर में होश में भाकर उठ खड़ा होता है और अपने पूर्वोक्त कर्मों के बारे में सोचने लगता है कि मैंने नर जन्म में दूसरे लोगों को कुष्ठादि रोग युक्त देख कर उन से ग्लानि की थी, दूसरों को भय पैदा करने बाला बीभत्स रस का प्रदर्शन किया था, अद्धत रस का प्रकाशन किया था, शृंगार रस को अपना कर इतर व्यभिचारिणी स्त्रियों के साथ में आलिङ्गन चुम्बनादि कर्म किया था उसी पाप के उदय से मैं पहां आकर पैदा हुआ है । ऐसा सोचते हये सन्तान होकर सामने देखता है तो नदी दीख पड़ती है, तो पानी पीने की इच्छा से वहां जाता है और नदी के उस दुर्गन्धमय तथा विषले पानी को जब पीता है तो एकाएक उस के शरीर में पहले से भी अधिक वेदना होती है, तो उसे शांत करने की भावना को लेकर सामने दीख पड़ने वाले वृक्ष के नीचे जाकर बैठता है ।।
मनेगळे नडुगु कामिग । ळनेंब मातिल्लि पुसि परस्त्री।। . ननेय मोनेयंबुमलरळनंबु । मायन दोळवननोयिपुदु दिटं ॥४॥ कोळ गोळगेकळ वरपुसि । गेळे यिदोळगे सुळिदु पर वनिता सं॥ कुल दोलु नेरेव वरघ । मोळगोळ गिरि विचित्र रोगच्छदि ॥५॥
इस लोक में यह बात प्रसिद्ध है कि वृक्ष के फूल पत्ते जब कामी लोगों के ऊपर पड़ते हैं तो उन्हें प्रानन्द प्रतीत होता है किन्तु उस नारकी के शरीर पर जो वृक्ष के फूल पत्ते पड़ते हैं सो सब तलबार का काम करते हैं। न से उसका शरीर कट जाता है।
ज्वरदाह श्वास कास प्रण पिटिक शिरो रोग सवंग मूला। दिल जा संदोह जड़ा भरदि लोलरुतं सुतलु बने यिदं । बिरयुत्तं नार कर्क ळ निरि किनड़े गळं शस्त्रदि सोळ्कुंगो। ळ गरे युक्तं कूगिडुत्तं मति ल्के शदि बरदु तिप्पर् ॥६॥
अर्थात् इस प्रकार उस नारकी को एक साथ ज्वरकाश श्वास, वरण, पिटक दाह, शिरो रोगः सर्वाङ्ग ज्वर आदि अनेकानेक रोग बहुत ही सताते