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________________ । इतने हो में और नारकी जीव आकर उसे फिर कष्ट देने लगते हैं। तब बुरी तरह से रोने चिल्लाने लगता है इस प्रकार से कमंज तथा रोगज इन दोनों प्रकार के कष्ट उस नारकी जीव को निरन्तर सताते रहते हैं और उसे घोर संकट-मय जीवन बिताना पड़ता है। वहाँ उन नरकों में रीछ, बाघ, सिंह आदि भयङ्कर पशु तथा गीध, काक, . चील आदि कष्टदायक पक्षियों आदि के रूप से नारकी जीव खुद ही विक्रिया के द्वारा अपने शरीर को बचा कर एक दुसरे को कष्ट पहुचाते रहते हैं तथा बरछी, भागा, हलबार यादि सभ निगा 5ए में उन नारकियों का शरीर अपने आप दुस्ख सहन करता रहता है। नारकी जीव की प्राशु और ऊचाई श्रादि सीमंतक में जघन्य आयु १०००० वर्ष की है उत्कृष्ट प्रायु ६०००० वर्ष की होती है। क्रम से बढ़ते-बढ़ते आगे चलकर पहले नरक के अन्त के इन्द्रक में उत्कृष्ट प्रायु एक सागरोपम की हो जाती है और द्वितीयादि नरकों में ३, ७, १०, १७.२२, ३३ सागरोपम की उत्कृष्टायु होती है। ऊपर की उत्कृष्ट में एक समय अधिक करने से नीचे वाले की जघन्य प्रायु होती है। शरीर की ऊंचाई सीमांतक में सात हाथ होती है। आगे बढ़ती हुई अपने अपने अन्त के इन्द्रक में पहिले वाले के शरीर की ऊंचाई सात धनुष तीन हाथ छ: अंगुल अन्तर से द्विगुरण कम से होती हैं । अन्त में ५०० धनुष होती है। कहा भी है गाथाफणमित्थेि दशनो जेवा जीवासहसाउगजहन्निदरे । तेन उदि लक्कजेट्ठा असक्क पुबाए कोइडये ॥३॥ सायरदशउत्तीरिय सग सग चरिमिद्धयम्मि इगतिन्नी सत्तदशऊ व हिवाविसत्तत्ति समा ॥४॥ आसद अथ विशेषी रूए। बाइदम्मि हारिणचयं । उरिम जेट्ठा सहयेण हियं हेट्टिम जहरण तु ।।५॥ पदम सत्त तिच्चवकं उदय हणुयरणि अंगुल सेसे ।। दुगुण कम पढ़मिदि रयणतियंजारण हारिणत्रय ॥६॥ अब आगे नारकी के अवधि क्षेत्र को बताते हैं --- श्लोक कानडी--- क्रोशचतुष्कं मोदलोळ । क्रोशाध मैदु कुन्दुगुबळि कत्तल् ॥ कोशादि कमप्पिनसम्, क्लेशं पेच्चलु कुदु गुम तद्वोधं ॥२५॥
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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