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________________ ( ४ ) परगुलगळ तलेयिदिलि । एरवळ ततळ लळिसि कुदिलोहद्रथमं ॥ २ ॥ यलं मिलवो निनगल्लेद े | निळळारवी पाके बंदळिद लबा || नलिद नेरेमेंद कडुगा । युव लोहपुत्रिकेयनाग्रह विनप्पिस्वर ॥ ३ ॥ अर्थात् — पुराने नारकी जीव वहाँ उन नये नारकियों को देखकर श्रत्यन्त कठोर वचन कहते हुये उन नारकी जीवों का घात करा देते है । पुनः उस शरीर में जो घाव हो गया उस पर अत्यन्त तीक्ष्ण खारी जल से सींचते हैं। गद्य का अर्थ - पुनः अग्नि को जैसे घी मिलने से बढ़ती जाती है उसी तरह सुर और असुर कुमार उन नारकियों को आपस के पूर्व जन्म के वैर याद दिलवा कर तथा विभंग ज्ञान से उनके पूर्व जन्म में किये हुए दोष की चेष्टा को जानकर अपने दोष आप खुद ही न समझ कर अत्यन्त कोषित होकर लड़ते हैं और आपस में अत्यन्त वेदना को प्राप्त होते हुए मूर्च्छित हो जाते हैं । श्रब नवीन नारकी क्या करते हैं सो कहते हैं तेवि विहंगेण तदो जागिदपुष्वावरारि संबंधा । सुहाहविकिरिया हति हरनि वा तेहि ||८|| अर्थ - वे नवोन नारकी भी विभंग अवधि ज्ञान के कारण तहां पर्याप्त ऐसे बहुरि शुभ को हने हैं । वा वहाँ पूर्ण भये पीछे जान्या है पिछला वैरीपणा का सम्बन्ध जिनने पृथक विक्रिया जिनके पाइये ऐसे होते संते अन्य नारकीनि तिना नारकियों करि आप हनिये हैं । ऐसे परस्पर वैर घात प्रवर्ते हैं । के नारकियों को ऐसा कुअवधिज्ञान होता है जिसके कारण परस्पर बैर को जानकर विरोध रूप ही प्रवर्ते हैं । बहुरि जो पूर्व भव में कोई उपकार किया हो वे जलती हुई अग्नि की ज्वाला में घी पड़ने पर जैसे वह उत्तरोतर बढ़ती जाती है उसी प्रकार एक दूसरे को देखने से उस नारकी के मन में क्रोध का वेग बढ़ता है । तथा अपने किये हुये दोषों की तरफ न देख कर सिर्फ सामने वाले के दोषों का स्मरण करके उसे चुनौती देते हुए इस प्रकार कहते हैं कि देखो तुमने गाय के मांस को बहुत अच्छा समझ कर खाया था तथा बकरे के मांस को उससे भी अच्छा समझ कर खाया था अतः अच्छा मांस है । ऐसा कह कर उसी के हाथ आदि अब यह देखो उससे भी बहुत के मांस को काट कर उसके
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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