________________
धकोणक-पुस्तकमाला అ eeeeee00000eeee किनारे एक शिलापर प्राचीन समयमें श्रीमुनिसुव्रतस्वामीकी प्रतिमा प्रकट हुई जिसका अतिशय लोकमें खूब फैला और तबसे यह तीर्थ प्रसिद्धिमें आया । उक्त विद्वानोंके लेखों और वर्णनोंसे स्पष्ट है कि विक्रमकी १३वी, १४वीं शताब्दीमें यह एक बड़ा तीर्थ माना जाता था | और वि. की १८वीं शताब्दी तक प्रसिद्ध रहा तथा यात्री उसकी बन्दनाके लिये जाते रहे हैं।
मेवाड़देशस्थ नागफणी-मल्लिजिनेश्वर
मदनकातिके उल्लेखसे मालूम होता है कि मेवाड़के नागफणी गाँवमे खेतको जोतते हुए एक आदमीको शिला मिली । उस शिलापर श्रीमल्लिजिनेश्वरकी प्रतिमा प्रकट हुई और वहाँ जिनमन्दिर बनाया गया । जान पड़ता है कि उसी समयसे यह स्थान एक पवित्र क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्धि में पाया और तीर्थ माना जाने लगा। यद्यपि यह तीर्थ कबसे प्रारम्म हुआ, यह बतलाना कठिन है फिर भी यह कहा जा सकता है कि वह सातसौ-साढ़े सातसौ वर्ष प्राचीन तो अवश्य है। अब मालग नहीं वह वर्तमानमें मौजूद है या नहीं ?
मालबदेशस्थ मङ्गलपुर-अभिनन्दनजिन ___ मालाके मङ्गलपुरके श्रीअभिनन्दनजिनके जिस अतिशय और प्रभावका उल्लेख मदनकीर्तिने किया है उसका जिनाममूरिने भी अपने 'विविधतीर्थकल्प' गत 'अवन्ति देशस्थ-अभिनन्दनदेवकल्प नामके कल्प (पृ. ५७)में निर्देश किया है और साथमें एक कथा भी दी है । उस कथाका सार यह है कि म्लेच्छोंने अभिनन्दनदेवकी मूर्तिको तोड़ दिया लेकिन यह जुड़ गई और एक बड़ा अतिशय