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४८. प्रकीर्णक पुस्तकमाला ०००eesceepeeeeeee
धारा-पार्श्वनाथ धाराके पावनाथके सम्बन्धमें मदनकौतिके प्रस्तुत उल्लेखके सिवाय और कोई परिचायक उल्लेख अभी तक नहीं मिले और इस लिये उसके बारे में इस समय विशेष कुछ नहीं कहा जा सकता।
बार-बहरे व मदनीतिनै बृहत्पुर में बृहद्दपकी ५७ हाथको विशाल प्रस्तर मूर्तिका उल्लेख किया है जिसे अर्ककीति नामके राजाने बनवाया था। जान पड़ता है यह 'यहरपुर बड़वानीजी है जो उसीका अपभ्रंश (बिगड़ा हुआ) प्रयोग है और 'बृहद्दव' वहाँ के मूलनायक आदिनाथका सूचक है । बड़वानीमें श्रीआदिनाथकी ५७ हाथ की विशाल प्रस्तर मूर्ति प्रसिद्ध है और जो बावनगजाके नामसे विख्यात है। बृहद्दव पुरुदेवका पर्यायवाची है और पुरुदेव आदिनाथका नामान्तर है | भताएष बृहत्पुरके बृहद वसे मदनकोतिको बड़वानीके श्रीआदिनाथके अतिशयका वर्णन करना विवक्षित मालम होता है । इस तीर्थके बारे में संक्षिाम परिचय देते श्रीयुत पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने अपनी 'जैनधर्म' नामक पुस्तकके तीर्थक्षेत्र प्रकरण (पृ. ३३५ )में लिखा है:
बड़वानीसे ५ मील पहाइपर जानेसे बड़वानी क्षेत्र मिलता है। ..""क्षेत्रफी वन्दनाको जाते हुए सबसे पहले एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन होते हैं । यह खड़ी हुई मूर्ति भगवान ऋषभदेवकी है, इसकी ऊँचाई ८४ फीट है । इसे बावनगजाजी भी कहते हैं । सं. १२२३में इसके जीर्णोद्धार होनेका उल्लेख मिलता है । पहाइयर २२ मन्दिर हैं । प्रतिवर्ष पौष सुदी से १५ तक मेला होता है।'