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शासन-चतुर्विंशिका 9000009800090909
मुगि सोलविजयजी पक्षियक तीक्षेत्रीको बदल भन्दा की थी और जिसका वर्णन उन्होंने तीर्थमाला में किया है । वे धारवाड़ जिलेके बकापुर को, जिसे राष्ट्रकूट महाराज अमोघवर्ष (८५१-६९)के सामन्त 'पंकेयेरस ने अपने नामसे बसाया था', देखते हुए इसी जिलेके लक्ष्मेश्वरपुर तीर्थ पहुँचे थे और वहाँ के 'शंखपरमेश्वर' की बन्दना की थी, जिनके बारे में उन्होंने पूोल्लिखित एक अनुश्र ति दी है। प्रेमीजीने इनके द्वारा वर्णित उक्त 'लक्ष्मेश्वरपुर तीर्थ पर टिप्पणा देते हुए ही अपना उक्त विचार उपस्थित किया है और पुरलगेरेको शंखदेवका तीर्थ अनुमानित किया है तथा होलगिरिको पुलगेरेका लेखकों द्वारा किया गया प्रान्त उल्लेख बतलाया है।
पुलगरेका होलगिरि या हुलगिरि अथवा होलागिरि हो जाना कोई असम्भव नहीं है। देशभेद और कालभेद तथा अपरिचितिके कारण उक्त प्रकारके प्रयोग बहुधा हो जाते हैं । मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा जहाँ प्रकट हुई उस स्थानका तीन लेखकोंने तीन तरहसे उल्लेख किया है । निर्वाणकाण्डकार 'अस्सारमे पट्टरिण' कहकर 'आशारम्य' नामक नगरमें उसका प्रकट होना बतलाते हैं और अपभ्रशनिर्वाणभक्तिकार मुनि उदयकीतिं 'आसरमि' लिखकर 'आश्रम में उसका आविर्भाव कहते हैं। मदनकीर्ति उसे 'श्राश्रम'
और अवरोधनगर वर्णित करते हैं और जिनप्रभमूरि आदि विद्वान् प्रतिष्ठानपुर मानते है । अतएव देशादि भेदसे यदि पुलगेरेका हुलगिरि या होलागिरि श्रादि बन गया हो तो आश्चर्यकी बात नहीं है । अतः जब तक कोई दूसरे स्पष्ट प्रमाण हुलगिरि या होलागिरिके अस्तित्व साधक नहीं मिलते तब तक प्रेमीजीके उक्त विचार और अनुमानको ही मान्य करना उचित जान पड़ता है। १ देखो, प्रेमीजी कृत 'जैनसाहित्य और इतिहास' पृ. २३६का फुटनोट ।