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शासन-चतुर्विंशिका [ ३५ ఆ0006eeeeeee90000006
निर्वाणकाण्डकार और अपभ्रंश निर्वाणभक्तिकारका भी यही कहना है
(क) उम्जंते णेमिजिणो'-प्रा०नि० का गा.१। (स्य) उज्जतिमहागिरि सिद्धिपत्तू,
सिरिनेमिनाहु जादवपयित्तु ।
इसके सिवाय इन दोनों अन्यकारोंने यह भी लिखा है कि प्रय म्नकुमार, शम्बुकुमार, अनिरुद्धकुमार और सात सौ बहत्तर कोटि मुनियों ने भी इसी उर्जयन्तगिरि-गिरनारसे सिद्ध पद प्राप्त किया है । यथा(क) एमसामिपाजुएणो संचुकुमारो तहेव अणिरुद्धो।
बाहत्तरकोडीश्रो उज्जते सत्तसया सिद्धा ।। नि. का.५ (ख) अएणे पुणु सामपजुण्णवेवि,
अणिरुद्धसहिय हई नवमि ते वि । अवरे पुणु सत्तसयाई तित्त्थु, बाह्तरिकोडिड सिद्धपत्तु ।
55 सिखूपत्तु। -अप. नि. भ. । यह उर्जयन्तगिरि पाँच पहाड़ोंमें विभक्त है । पहले पहाड़की एक गुफामें राजुलकी मूर्ति है । राजुलने इसी पर्वतपर दीक्षा ली थी
और तप किया था । राजुल तीर्थकर नेमिनाथकी पल्ली बननेवाली थी, पर नेमिनाथके किसी एक निमित्तको लेकर दीक्षित होजानेपर उन्होंने भी दीक्षा ले ली थी और फिर विवाह नहीं कराया था । दूसरे पहाड़से अनिरुद्धकुमार, तीसरेसे शम्भुकुमार, चौथेसे श्रीकृष्णजीके पुत्र प्रद्युम्नकुमार और पाँचसे तीर्थकर नेमिनाथने निर्वाण प्राप्त किया था। इस सिद्धतीर्थकी जैनसमाजमें वही प्रतिष्ठा है जो सम्मेदशिखरकी है। यह