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३६ ] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला 9089seeeeeeeeee सौराष्ट्र (गुजरात)में जूनागढ़के निकट अवस्थित है । तलहटीमें धर्मशालायें भी मनी नई हैं। सात उशा , यहाँ श्रीनेमि . नाधकी बड़ी मनोज्ञ और निरामरण मूर्ति रही जो खास प्रभाव एवं अतिशयको लिये हुए थी। मालूम नहीं वह मूर्ति अब कहाँ गई? या खण्डित हो चुकी है क्योंकि अब वहाँ चरणचिह्न ही पाये जाते हैं।
६. चम्पापुर बारहवें तीर्थकर वासुपूज्यका यह गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्षका स्थान है। अतएव यह सिद्धतीर्थ और अतिशय तीर्थ दोनों है । स्वामी पूज्यपादने लिखा है कि चम्पायुरमें वसुपूज्यसुन भगवान वासुपूज्यने रागादि कर्मबन्धको नाशकर सिद्धि (मुक्ति प्राप्त की है । यथा --
चम्पापुरे च वसुपूज्यसुतः सुधीमान । सिद्धिं परामुपगतो गतरागबन्धः ।। -सं. नि. भ. २२। यही निर्धारणकाण्ड और अपन'शनिर्वाणभक्तिमें कहा है(क) 'चंपाप व.मुपुज्ञजिणणाहो'-नि० का १ । (ख) पुगुं चंपनयरि जिणु वासुपुज, __णिवाण-पत्तु छंडेवि रज्जु ।-अ. नि० भ० ।
इस तरह चम्पापुरको जैनसाहित्यमें एक पूज्य तीर्ध माना गया है। इसके सिवाय, जनप्रन्थों में चम्पापुरकी प्राचीन दस राजधानियों में भी गिनती की गई हैं और उसे एक समृद्ध नगर बतलाया गया है। १ देखो, हा० जगदीशचन्द्रकृत 'जैनमन्थों में भौगोलिक सामग्री और
भारतवर्ष में जैनधर्म का प्रचार" शोधक लेख, प्रेमी-अभिनन्दनग्रन्थ पृष्ठ २५४ ।