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शासन-चतुस्विंशिका [३३ eeeee92900 అఅఅం इसी तरह 'प्राकृतनिर्वाणमण्ड' और मुनि उदयकीर्तिकृत 'अपभ्रंशनिर्वाणभक्ति में भी सेग्मेदपर्वतले बीस जिनेन्द्रोंके निवारण प्राप्त करनेका उल्लेख है और जो निम्न प्रकार है(ख) बीस तु जिणवरिंदा अपरान दिल्या ध्रुद किलेगा! ___ सम्मेदे गिरिसिहरे निवाणगया णमो तेसि ॥२|-नि० का० । (ग) सम्मेद-महागिरि सिद्ध जे वि, इंउ बंदउँ वीस-जिणिंद ते वि।
-अ० नि० भ०। इस तरह इस तीर्थका जैनधर्म में बड़ा ही गौरवपूर्ण स्थान है। प्रतिवर्ष सहस्रों जैनी भाई इस सिद्धतीर्थकी वन्दना के लिये जाते हैं। यह विहारमान्तके हजारीबाग जिलेमें ईसरी स्टेशनके, जिसका अब पारसनाथ नाम होगया है, निकट है। इसे पारसनाथ हिल' (पार्श्वनाथका पहाड़) भी कहते हैं, जिसका कारण यह है कि पर्वतपर २३खें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथका सबसे बड़ा और प्रमुख जिनमन्दिर बना हुआ है।
४. पानापुर
यहाँ से अन्तिम तीर्थङ्कर वर्ड मान-महावीरने निर्वाण प्राप्त किया है । अतएव पावापुर जेनसाहित्यमें सिद्धक्षेत्र माना जाता है । आचार्य पूज्यपादने लिखा हैपावापुरस्य बहिसन्नतभूमिदेशे पद्मोत्पलाकुसवतां सरसां हि मध्ये । श्रीवर्तमानजिनदेव इति प्रतीतो निर्वाणमाप भगवान्प्रविधूतपाप्मा।
-निर्वा० भ० २४॥