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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला 9000ceeeeeeeesdescea है कि चामुण्डरायको उक्त पोदनपुरके बाहुबलीकी मूर्ति के दर्शन करनेकी अभिलाषा हुई थी और उनके गुरुने उसे कुक्कुड सर्पोखे च्याप्त और
बनसे प्राचादेश होज उसमर्शन होगा अशक्य तथा अगम्य बतलाया था और तब उन्होंने जैनबिद्री (श्रवणबेल्गोल में उसी तरहकी उनकी मूर्ति बनवाकर अपनी दर्शनाभिलाषा पूर्ण की थी । अतः मदनकीर्तिकी उक्त सूचना विचारणीय है और विद्वानोंको इस विषयमें खोज करनी चाहिये ।
उपर्युक्त उल्लेखोंपरसे प्रकट है कि प्राचीन काल में पोदनपुरके बाहुबलीका बड़ा माहात्म्य रहा है और इसलिये वह तीर्थक्षेत्र के रूपमें जैनसाहित्यमें खासकर दिगम्बर साहत्यमें उलिखित एवं मान्य है।
३. सम्मेदशिखर सम्मेदशिखर जैनोंका सबसे बड़ा तीर्थ है और इसलिये उसे 'तीर्थराज' कहा जाता है । यहाँसे चार नीर्थङ्करों (ऋषभदेव, वासुपूज्य, अरिष्टनेमि और महावीर)को छोड़कर शेष २० तीर्थङ्करों और अगणित मुनियोंने सिद्ध-पद प्राप्त किया है । इसे जैनोंके दोनों सम्प्रदाय (दिगम्बर
और श्वेताम्बर) समानरूपसे अपना पूज्य तीर्थ मानते हैं। पूज्यपाद देवनन्दिने अपनी संस्कृतनिरिणभक्ति में लिखा है कि बीस तीर्थ रोने यहाँसे परिनिर्वाणपद पाया है । यथा(क) शेषास्तु ते जिनवरा जित-मोहमझा
ज्ञानार्क-भूरिकिरणरषभास्य लोकान् । स्थान परं निरखधारितसौख्यनिष्ठ सम्मेदपर्षततले समवापुरीशाः ॥२५॥