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३० ] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला అe000అeeeeeeeeee रक्षिणापथके अपमझ देशकी राजधानी पोतन या पोतलि एवं हिन्दग्रन्थ भागवतपुराणमें इक्ष्वाकुवंशीय राजाओंकी अश्मक देशकी राजधानी पौदन्य कहा गया है और वह प्राचीन समयमें एक विख्यात नगर रहा है । अस्तु ।
जैन इतिहासमें पोदनपुरका उल्लेखनीय स्थान है । श्रादिपुराण आदि जैनग्रन्थों और अनेक शिलालेखोंमें' वर्णित है कि श्रादितीर्थकर ऋषभदेवके दो पुत्र थे-भरत और बाहुबलि । ऋषभदेव जब संसारसे विरक्त हो दीक्षित हुए तो उन्होंने भरतको अयोध्याका और बाहुबलिको पोदनपुरका राज्य दिया और इस तरह भरत भयोन्याके और बाहुबलि पोदनपुरके राजा हुए । कालान्तरमें इन दोनों भाइयोंका युद्ध हुआ। युद्धमे बाहुबलि की विजय हुई। परन्तु राहुबलि संसारकी दशा देखकर राज्यको त्याग तपस्वी हो गये और कठोर तपकर पोदनपुरमें उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त करके निर्वाण-लाभ किया । बादको सम्राट भरतने अपने विजयी अद्भुत त्यागी तथा अद्वितीय तपस्वी और इस युगमें सर्वप्रथम परमात्मपद एवं परिनिर्वति प्राम करनेवाले अपने इन आदर्श भाईकी यादगारमें पोदनपुरमें ५२५ धनुष. प्रमाला उनको शरीराकृतिके अनुरूप अनुपम मूर्ति स्थापित कराई जो बड़ी ही मनोज्ञ और लोकविश्रत हुई । तबसे पोदनपुर सिद्धातीर्थ और अतिरायतीर्थक रूपमें जैनसाहित्यमें विश्रुत है। आचार्य पूज्यपादने अपनी निर्वाणभक्ति में उसका सिखतीर्थक रूपमें समुल्लेख किया है । यथा-- १ देखो, शिलालेख न ५ श्रादि, जो बिन्ध्यगिरिपर उत्कीर्ण है। .
--(शि०सं० पृ. १६६)। २ वह यह कि राज्य जैसे जघन्य स्वार्थ के लिये भाई-भाई भी लाते हैं
और एक दूसरेकी नानके दुश्मन बन जाते है।