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शासन-चतुनिशिका [२६ Seeeeeeeeeeeeeeeeee
और अच' शब्दका प्रयोग करके अपने समयमें उसका होना तथा देवोद्वारा भी उसकी बन्दना किया जाना खासतौरसे सूचित किया है। मालूम नहीं, अब यह मूर्ति अथवा उसके चिह्नादि वहाँ मौजूद है या नहीं ? पुरातत्वोमियोंको इसकी खोज करनी चाहिए।
२. पोदनपुर पोदनपुरकी स्थितिके सम्बन्धमें अनेक विद्वानोंने विचार किया है। डाक्टर जैकोबी विमलमूरिष्कृत "पउमचरिय' के आधारसे पश्चिमोतरसीमाप्रान्तमें स्थित 'तक्षशिला'को योदनपुर बतलाते हैं और डाक्टर गोविन्द पै हैदराबाद-बरारमें निजामाबाद जिलेके 'बोधन' नामक एक ग्रामको पोदनपुर कहते हैं। बा. कामताप्रसादजी जैनने इन दोनो मतोंकी समीक्षा करते हुए जैन और जैनेतर साहित्यकी साक्षी द्वारा प्रमाणित किया है। कि तक्षशिला पोदनपुरसे भिन्न पश्चिमोत्तरसीमाप्रान्तमें अवस्थित था और पोदनपुर दक्षिणभारतमें गोदावरीके तटपर कहीं घसा हुआ था। भगवजिनसेनके परमशिष्य और विक्रमकी ध्वीं शताब्दीके विद्वानाचार्य गुणभद्र ने अपने उत्तरपुराणमें स्पष्ट लिखा है कि भारत के दक्षिण में सुरम्य (अश्मक) नामका एक बड़ा महान्) देश है उसमें पोदनपुर नामक पिशाल नगर है जो उस देशकी राजधानी है'। श्रीकामताप्रसादजीने यह भी बतलाया है कि जैनपुराणोंमें पोदनपुरको पोदन, पोदनापुर, पौदन और पोदन्य तथा बौद्धमन्थोंमें १ देखो, “पोदनपुर और तक्षशिला' शीर्षक लेस्व, 'जैन एन्टीकरी' • मा०४ कि. ३ । २ जम्बूषिभूषणे द्वीपे भरते दक्षिणे महान् | सुरम्यो विषयस्तत्र विस्तीर्णे पोदनं पुरं ।।