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२४] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला అeeeeeeeeeeee
भास्ते सम्प्रति मेदपाटविषये प्रामो गुणग्रामभूर्माना नागफणीति तब कृषता लब्धा शिला केनचित । स्वप्नं वृद्धमहार्जिकामिह' दर्दा स्याकारनिर्मापणे स श्रीमविजिनेश्वरो विजयते दिग्याससां शासनम् ॥३३॥
मेदपाट (मेवाड़)देशमें 'नागफणी' नामका एक गाँव है जो गुणीजनों और गुणोंकी खानि है । वहाँ किसीको खेत जोतते हुए एक शिला मिली । उस शिलापर जिन्होंने अपना श्राकार बनवानेके लिये वृद्धमहार्जिकाको स्वम दिया वह श्रीमल्लिजिनेश्वर दिगम्बरशासनकी विजय करें ।
कहा जाता है कि मेवाड़के नागफणी नामक गाँवमें एक शिला के ऊपर श्रीमल्लिजिनेश्वर प्रकट हुए और उन्होंने स्वम दिया कि वहाँ उनका जिनालय बनाया जाय । बादको वहाँ विशाल जिनमन्दिर अनाया गया और इस तरह वे लोकमें 'नागफणीके मल्लिजिनेश्वर के नामसे प्रसिद्धिको प्राप्त हुए ||३||
श्रीमन्मालवदेश-मङ्गलपुरे म्लेन्डैः प्रतापागतः भमा मूर्तिरथोऽभियोजित-शिराः' सम्पूर्णतामाऽऽययौ । यस्योपवनाशिनः कलियुगेऽनेकप्रभावैर्युतः स श्रीमानमिनन्दनः स्थिरयते दिग्वाससा शासनम ||३||
मालवा देशके मङ्गलपुर नगरमें म्लेच्छोंके द्वारा, जो अपने प्रभावको फैलाते हुए वहाँ पहुँचे, श्रीअभिनन्दन जिनेन्द्रकी मूर्ति जब
१ शिलायां । २ अथ या रति अध्याहारः । ३ सती।