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शासन-चतुर्विंशिका అకలం'cret000000066
___ जो मानते हैं कि धर्म अधर्म, शरीर, जन्य-जनक; स्वर्गअपवर्ग आदि सब क्षणिक हैं न किसीके बन्ध है और न किसीके मोक्ष उन बौद्धोंने भी निर्मल मनसे श्रात्मतत्वको चित्सन्ततिके रूपमें माना है और दिगम्बर है।
__ इस पधका आशय यह है कि सभी पदार्थोंको क्षणिक मानने वाले बौद्धोंने भी आखिर श्रात्मतत्वको किसी न किसी रूपमें माना है और आत्माका यह मानना आंशिकरूपमें दिगम्बरशासन है ॥३१॥
यस्मिन' भूरि 'विधातुरेकमनसो भक्ति नरस्याऽधुना मत्काल जगतां त्रयेऽपि विदिता जैनेन्द्रविम्बालयाः । प्रत्यक्षा इव भान्ति निर्मलदशो देवेश्वराऽभ्यर्चिता विन्ध्ये भूहि भासुरेऽतिमहिने विश्वाससा शासनम ॥३॥
सुप्रसिद्ध अथवा अत्यन्त पूजित तथा देदीप्यमान विन्ध्यगिरिपर जो जगत्पसिद्ध और इन्द्रद्वारा अर्चित सुवर्णादि विशिष्ट धातुओंसे बने हुए अगणित जिनमन्दिर विद्यमान हैं उनकी अनन्यभक्ति करने वारले सम्यग्दृष्टि मनुष्यको वे आज भी तत्काल प्रत्यक्षकी तरह प्रतिभासित होते हैं सो यह दिगम्बरशासनका ही अतिशय है। .
विन्ध्यगिरिपर प्राचीन समयमें अनेक मनोज्ञ चैत्यालय बने थे, ऐसा जैन इतिहास और शिलालेखोंसे प्रकट है और जो रचयिताके समयमें वहाँ मौजूद थे। उनका यह अतिशय था कि वे सम्यग्दृष्टि भक्त मनुष्योंको सदा प्रत्यक्षसे मालूम होते थे ॥३॥
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१ विशिष्टा धातुर्विधातुः सुवर्णरून्यताम्नगरिकादिः बातावेक वचनम् । २ भक्ति प्रति एकचित्तस्य । ३ व सति प्रतिमहिते अति पूजिते सति ।