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शासन चतुस्त्रिंशिका
अनेक प्रभावयुक्त
तोड़ दी गई तो वह पुनः जुड़ गई और पूर्ण अवयवविशिष्ट होगई । यादको उनके प्रभावसे नाना उपद्रव दूर हुए वह श्रीश्रभिनन्दन प्रभु दिगम्बरशासनको सुदृढ करें। यहाँ माल पुरस्थ श्रीअभिनन्दन नेन्द्रका यह अतिशय बतलाया है कि आततायी म्लेच्छोंने जब उनकी मूर्तिको तोड़ दिया तो वह मूर्ति तुरन्त जुड़ गई और पूर्ववत् सम्पूर्ण होगई। इस अतिशय और उपद्रवोंको दूर करने आदि अनेक प्रभावोंसे दिगम्बरशासनकी महिमा प्रकट हुई और इसलिये श्रीश्रभिनन्दन जिनके द्वारा उसके लोक सदा बने रहनेकी रचयिताने कामना की है ||३४||
प्रशस्ति
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इति हि मदनकीर्तिश्चिन्तयन्नाऽऽत्मचित्ते
,
विगलति सति रात्रेस्तुर्य भागाभागे । कपट - शत - विलासान् दुष्टबागन्धकारान्
जयति विहरमाणः साधुराजीव बन्धुः ||३४|| इस तरह यह मदनकीर्ति साधु (यति) इन उपर्युक्त चौतीस पद्योद्वारा कथित वस्तुका - दिगम्बरशासन के प्रस्तुत माहात्म्यका —रात के चौथे पहरके आधे भागके बीत जानेपर अपने चित्तमे चिन्तन करता और fitness प्रति बन्धुत्वक भावनाको लिये विहार करता हुआ कपटजालों एवं दुष्ट वचनों को जीतने में तत्पर रहता है ।
इस पद्यके द्वारा सुनिमदनकीर्तिने अपनी कुछ आत्मचर्या - शान्तवृत्ति और वीतरागपरिणति का संसूचन (कथन) किया है और अपने नामोल्लेखपूर्वक पूर्वोक्त वक्तव्यका उपसंहार किया है ||३५||
१ इति पूर्वोक्तचतुस्त्रिंशक्का न्योतार्थम् ।