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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला అంఅంఅంఅంఅంత?
यः पूज्यो जलदेवताभिरतुल-सन्नमैदा-पाथसि श्रीशान्तिविमल स रक्षतु सदा दिग्बाससां शासनम ||२७||
श्रीदेवी आदिके द्वारा जिनके चरणकमलोंकी पूजा की गई और हर्षके साथ किसी कल्याणकमें जिनकी स्थापना की गई और फिर जो उस स्थानसे चलायमान न किये जासके तथा नर्मदाके जल में जलदेवताओद्वारा जो पूजित हुए वह श्रीशान्ति जिनेवर प्रभु निर्मल दिगम्बर शासनकी सदा रक्षा करें।
नर्मदाके श्रीशान्तिजिनका यह अतिशय है कि श्रीदवी श्रादिके द्वारा पूजे जाकर किसी एक कल्याणकस्थानपर स्थापित होजानेपर फिर वे वहाँसे चलायमान न हो सके और जलदेवताओं द्वारा नर्मदाके जल में वही पूजित हुए ॥२॥
पूर्व याऽऽअममाजगाम सरितां नाथास्तु दिव्या शिला तस्यां देवगणान् द्विजस्य दधत स्तस्थौ जिनेशः स्थिरम् । कोपाद्विप्रजनावरांधनगरे देवः प्रपूज्याम्बरे दधे यो मुनिसुव्रतः स जयतादिग्वाससा शासनम् |२८11
जो बहनद (गोदावरी । की दिव्यशिला पहले आश्रमको प्राप्त हुई उस शिलापर देवगणोंको धारण करनेवाले एक द्विज (ब्रालय) के कोपसे जो जिनेन्द्र प्रभु उस शिलापर स्थिर होकर ठहर गये-वहाँसे टस से मस न हुए और बादको देवोद्वारा अाकाशमें पूजित होकर विप्रजनों के अवरोधनगरमें विराजमान हुए ? बह श्रीमुनिसुनतजिन दिगम्बरोंके शासनकी जय करें। १ शिलायां । २ हरिहरकमलासनादिदेवसमहान् । ३ प्राणस्योपरि । ४ तस्यां शिलायां धारयतः ।