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शासन-चतुस्चिशिका
[ १६ వరింపంఅంఅంఅఅఆ
जो रागादि अदृष्ट चेतनभावकर्म के निमित्तसे होता है, दुःखपरम्परारूप संसारादि होता है और संयोगके न रहनेपर आत्माको कैवल्य एवं निर्वाणकी प्राप्ति होती है और इस तरह स्पष्ट है कि सोख्यों द्वारा भी कितनी ही बातोंमें दिगम्बरशासन समाश्रित हुआ है और इसलिये उसका प्रभाव प्रकट है ||
चार्वाकैश्चरितोकिनेरभिमनो जन्मादि-नाशान्तको जीवः हमादिमयस्तथाऽस्य न पुनः स्वर्गापवर्गों कचित् । न्यायाऽऽयानवचोऽनुमार-धिषणात्मान्तरं मन्यते यैस्तव(स्तैों)चितमेव(त) देव परम दिग्वाससां शासनम ।।२६।।
चारित्ररूपधर्मका तिरस्कार करनेवाले जिन चार्वाकोने जीवको जन्म और नाशवान् तथा पथिवी आदि चार भूतरूप माना है और स्वर्ग तथा मोक्ष उसके स्वीकार नहीं किये फिर भी न्यायप्राप्त वचनानुसारी बुद्धिसे प्रात्मानन्तर-दूसरा आत्मा (जीव) उन्होंने माना है सो यह उचित ही है और इस तरह चार्वाकोंने भी दिगम्बर शासनका आश्रय लिया है।
तात्पर्य यह कि आत्माबहुत्वको स्वीकार करके चार्वाकोंने भी दिगम्बरशासनके सिद्धान्त-आत्माबहुत्वको माननेसे इस शासनके महत्वको अङ्गीकार किया है ॥२६||
श्रीदेवीप्रमुबाभिरचितपदाम्भोजः सुरा (मुदा)पिकचिन कल्याणेऽत्र निवेशिनः पुनरतो नो चालितुं शक्यते ।
१ अन्म भादौ यस्य स जन्मादिः । नाशोन्ते यस्यामो नाशान्तः । पश्चात् कर्मधारयः । स्वायें कः ।