________________
५८]
प्रकीर्णक-पुस्तकमाला 9630000086660ee है, निर्गुण है तथा अकर्ता है, इन दोनों का अहवरूपसे संसर्ग-- संयोग होता है, ऐसा सारयों ने कहा और माना है सो सुस्पष्ट है कि उन्होंने भी दिगम्बरशासनका आश्रय लिया है।
सांख्यो ने मन में दो तत्त्व स्वीकार किये हैं-१ प्रकृति और २ पुरुष | प्रकृति जड एवं पुद्गल है और पुरुष चेतन एवं साक्षी (दृष्टा) है। प्रकृति पुण्यपापादि कर्मकी की है और पुरुष (आत्मा) भोक्ता है, पुष्करपलाशकी तरह निर्लेप तथा श्रबन्धक है। किन्तु दोनोंमें उपकार्युपकारकभाव, जो कि अदृष्टरूप है, होने संसर्ग होता है और उससे संसारादि होता है । दिगम्बरशासनमें भी मूलमें दो तत्व स्वीकार किये गये है'- जीव और २ अजीव । जीव तन तथा अपने चैतन्यभावोंका भोक्ता है निश्चयनयसे अजीव-पुद्गल कोका अकर्ता तथा प्रबन्धक है, शुद्ध है और निर्मल है। और अजीव जड एवं पुद्गल है पुण्यपापदि शुभाशुभकर्मका कर्ता है । इन दोनोंके संयोगसे,
१(क) जीवम जीवं दवं जिणवरचसहेगा जेग रिंगहिंड। - द्रव्यसंग्रह गा.' (स) 'जो पस्सदि अप्याणं अबद्धपुर अणण्णमविसेस ।
अपदेससंतमझ पस्दि जिरासासणं सध्यं ||१|| अगणाणमोहिदमदी मझमिण भणदि पुग्गलं दव्यं । बद्धमवद्ध च सहा जीवो बहुभावसंजुत्तो ||२|| श्रमिकको खलु मुदो दंसणणारामइश्रो सदाऽरूवी । ण दि अस्थि मम किं चि वि अगणं परमाणुमित पि ॥३८॥'
- समयसार (ग) 'संयोगमूला जीवेन प्राप्ता दुःस्वपरम्परा ।'- लघुसामायिकपाठ ।
इत्यादि दिगम्बर जैन शासन के सिद्धान्तशास्त्र द्रष्टव्य है।