________________
• १४] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला అం900980000000000eee
जिन्हें तिर्यंच भी भक्तिपूर्वक 'अपनी वाणीद्वारा नमस्कार करते हैं और जिनके चरणदयके दर्शन कर लेनेपर भव्य जीव दुर्गतिको प्राप्त नहीं होते तथा जो पावापुरमें इन्द्रद्वारा सम्पूजित हैं वह निष्पाप श्रीवीरजिनेन्द्र दिगम्बर शासनकी सदा रक्षा करें:-लोकमें उसके प्रभावको हमेशा कायम रखें।
___ पावापुरमें श्रीवीरजिनेन्द्रकी जो प्रतिमा प्रतिष्ठित है उसका अतिशय यह है कि तिर्यंच भी उसे अपनी हार्दिक भक्ति प्रकट करने हैं तथा उसके दर्शन करनेवाले भव्योंको खोटी गतिकी प्राप्ति नहीं होती-वे उत्तम्-देव-मनुष्यकी गति को प्राप्त होते हैं ॥१६॥
सौराष्ट्र यदुवंश-भूषण-मरणे: श्रीनेमिनाथस्य या मूर्तिर्मुक्तिपथोपदेशन-परा शान्ताऽऽयुधाऽपोहनात् । वसभरणविना गिरिवरे। देवेन्द्र-संस्था(ला)पिता चित्तभ्रान्तिमपाकरोतु जगतो दिग्वाससां शासनम् ॥२०॥
यदुवंशभुषण श्रीनेमिनाथ तीर्थकरकी सौराष्ट्र (गुजरात) में गिरनार पर्वतपर जो आयुध, वन और श्राभरण रहित भव्य, शान्त तथा मोक्षमार्गका मूक उपदेश करने वाली मूर्ति सुप्रतिष्ठित है और जो देवेन्द्र द्वारा संस्था(स्ना)पित है वह संसारीजनके चित्तकी भ्रान्तिअज्ञानको दूर करे और दिगम्बर शासनके माहात्म्यको लोकमें प्रसृत करे ।
गिरनार पर्वतपर श्रीनेमिनाय तीर्थकरकी मनोन और शान्त दिगम्बर जिनमूर्ति बनी हुई है । वह मूर्ति इतनी भव्य और चित्ता१ गिरिनारपर्वते । २ पति ।