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शासन- धातुस्त्रीशिका
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स्फुरायमान सहस्रफणाओंसे विशिष्ट घरणेन्द्रकी प्रकट होरही फणाओंकी रक्षावली ( मणियों) की बृहद्ज्योतिले भासमान हैं वह श्रीज्ञायापार्श्वप्रभु दिगम्बर शासन की जय करें ।
इस में छायापार्श्वप्रभुका अतिशय बतलाया गया है ॥१७॥ क्षाराम्भोधिपयः सुधा इव प्रत्यक्षमाऽऽस्वाद्यते
रसकृत् यच्छायया संभरत् । पूर्त (तः) पूततमः स पञ्चशत कोइएड प्रमाणः प्रभुः श्रीमानादिजिनेश्वरी स्थिरयते दिग्वाससां शासनम् ॥१८॥
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जिनकी छायाके पढ़नेसे प्रतिबिम्बको धारण करता हुआ लवणसमुद्रका जल प्रत्यक्ष मृतकी तरह स्वादु (मीठा) लगता है वह अत्यन्त पवित्र पाँचौ धनुष प्रमाण श्रीश्रादिजिनेश्वरप्रभु दिगम्बर शासनको स्थिर करें ।
जान पड़ता है लवण समुद्र के किनारे कहीं श्रीश्रादिनाथ जिनेश्वरका कोई प्रसिद्ध जिनमन्दिर रहा है जिसमें पाँचसो धनुषकी अवगाहनासे युक्त श्रीश्रादिनाथ जिनकी सातिशय प्रतिमा प्रतिष्ठित थी और जिसका यह अतिशय था कि उसकी छाया समुद्र में पड़नेसे उसका जल प्रत्यक्ष ही अमृतकी तरह मीठा मालूम होता था ||१८||
तिर्योऽपि नमन्ति यं निज-गिरा गायन्ति भक्त्याशया दृष्टे' यस्य पदद्वये शुभद्दशो' गच्छन्ति नो दुर्गतिम् । देवेन्द्रार्चित-पाद- पङ्कज-युगः पावापुरे पापड़ा श्रीमद्वीर जिनः स रक्षतु सदा दिग्वाससां शासनम् ||१६||
१ सति । २ सम्यग्दृष्टयः ।