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शासन-चतुरिंशिका [ १५ 9000000000000000 कर्षक है कि लोग वहाँ जाकर उसके बड़ी श्रद्धासे दर्शनादि करते हैं और उसके मूक उपदेशको सुनते हैं जिससे उनके चित्तको बड़ी शान्ति निराभुतता पा ही है ॥२०॥ यस्याऽधाऽपि सुदुन्दुभि-स्वरमलं पूजां सुराः कुर्वते 'भव्य-प्रेरित-पुष्प-गन्ध-निचयोऽध्यारोहति मातले(ल) 1 नित्यं नूतन-पूजयाऽर्चित-तनुः श्रीवासुपूज्योऽवाच्य)भात् चम्पायां परमेश्वरः सुखकरो दिग्वाससां शासनम् ।।२।।
जिनकी आज भी देवगण दुदुन्दुर्मिक मनोहर स्वरके साथ यथेष्ट पूजा करते हैं तथा भव्याद्वारा जिनपर चढ़ाये गये फूलों की भारी गन्ध पृथिवीपर फैल जाती है और जो चम्पापुरी में नित्य मई पूजाओंसे पूजित होते हुए शोभित हैं वह चम्पापुरीके परम सुखकारी श्री वासुपूज्य परमेश्वर दिगम्बर शासनको प्रवृद्ध करें।
चम्पापुरीके श्रीवासुपूज्यजिनकी यह महिमा है कि इस समय भी देव उनकी बड़ी भक्ति के साथ पूजा-अर्चा करते हैं तथा भव्यजन उल्लेखनीय भारी पुष्प चढ़ाते हैं ||२||
तिर्यग्वेपमुपास्य पश्यत तपो वैशेषिकेनारणा)ऽऽदरात् भन्योत्सृष्ट-कर्णरत्रश्यमसम - पास सदा कुर्वता । चक्रे घोरमनन्यचीर्णमखिलं काऽऽनिहन्तुं त्वरा तत्वेनाऽपि समाश्रितं सुविशद दिग्वाससां शासनम् ॥२२॥
देखो, वैशेषिकमतप्रवर्तक करणाद महर्षिने तिर्यच (कपोत)का वेष धारणकर भव्यजनी ( दयालु लोगों ) के द्वारा डाले गये १ यस्येति अत्रापि सम्बन्धो (सम्बद्धयत इति) ज्ञेयः ।