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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला seeeeeeesesaneDSEa90 था कि उसके नीचेसे एक सवार निकल जाता था। इस अतिशयका प्रस्तुत पद्यमें मुनि मदनकीर्तिने उल्लेख किया है । तार्किकशिंगमणि प्राचार्य विद्यानन्दने तो श्रीपुर के पार्श्वनाथको लक्ष्य करके एक महत्वका स्तोत्र ग्रन्थ ही रचा है, जिसका नाम 'श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र' है और जो तीस पद्यात्मक है ॥३॥ चास सार्थपतेः पुरा कृतवतः शङ्कान् गृहीत्वा बहून् सद्धर्मोन्यतचेतसो हुलगिरी कस्याऽपि धन्यात्मनः । प्रातमागभुपेयुषो न चालता शशस्य गोणी पदं यावच्छङ्गजिनो निरावृतिरभाडिग्वाससां शासनम् ॥४॥
पूर्वकालमें एक सार्थपतिने, जिसका नाम सागरदत्त था और जो परम धार्मिक धनिक सत्पुरुष था, बहुत शहडोको ग्रहणकर हुलगिरिपर रात्रिमें वास किया। जब वह वहाँसे प्रातः चलने लगा तो शलकी गोणी (गांन) एक पद (डग) भी न चली, जब तक वहाँ शङ्खजिन दिगम्बर मुद्राको लिये हुए प्रकट हुए और इसलिये दिगम्बरोंका शासन महामहिमाशाली होनेसे सदा जयवन्त हो। अर्थात लोकमें सर्वत्र प्रवर्तता हुआ वह सबका कल्याण करे।
इस पद्यमें, जिस अतिशय एवं महिमाको लिये हुम शलजिनका आविर्भाव हुआ उसका समुल्लेख किया गया है और बतलाया गया है कि उनके दिगम्बररूपद्वारा ही वह महिमा लोक में प्रसिद्ध हुई । यही कारण है कि अनेक जैन विद्वानोंने शङ्खजिनपर स्तोत्रादिके रूपमें कई महत्वपूर्ण रचनाएँ भी लिखी हैं। मालूम होता है कि उक्त हुलगिरि ही शवजिनतीर्थ है और जो जैन साहित्यमें बहुत प्रसिद्ध रहा है ॥४॥ १ सागरदत्तामिधानस्य । २ तावत् शंखदेवः । ३ दिगम्बररूपः ।