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शासन-चतुस्लिंशिका
[३ speeeeeeeeeeeeeeeeee भी वन्दनीय ऋषिमुनियों और देवादिकों द्वारा बन्दनीय हैं तथा आज भी पोदनपुरमें शोभित हैं यह बाहुबली स्वामी दिगम्बर शासनको प्रवृद्ध करें।
पोदनपुरमें, बाहुबली स्वामीकी विशालकाय एवं प्रभावपूर्ण जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित बतलाई जाती है जो रचयिताके समयमें वहाँ मौजूद थी और जिसके लिये उन्होंने 'अन्धाऽपि प्रतिभाति पोदनपुरे यो धन्वन्धः स बैं' शब्दोंका स्पष्ट प्रयोग किया है तथा जो दिगम्बर मुद्रामें विराजमान थी और लोकमें अपने प्रभावद्वारा दिगम्बर शासनकी महत्ताको प्रकट करती हुई ख्यातिको प्राप्त थी ||२||
पत्रं यत्र विहायसि प्रविपुले स्थातुं क्षणं न क्षम सत्राऽऽस्ते' गुणरत्ररोहणगिरियो देवदेवो महान् । चित्र नाऽत्र करोति कस्य मनसो दृधः पुरे श्रीपुरे स श्रीपार्श्वजिनेवरो विजयते दिग्वाससां शासनम् ॥३।।
जिस बहुत ऊँचे श्राकाशमें एक पता भी क्षणभरके लिये ठहरनेको समर्थ नहीं है उस आकाशमें भगवान पार्श्वजिनेश्वरका गुणरमपर्वतरूप भारी जिनबिम्ब स्थिर है, श्रीपुर नगरके कह पार्श्वजिनेश्वर दर्शन करनेपर किसके मनको चकित नहीं करते ? अर्थात जिसने एक भी बार उनका दर्शन किया है उसके भी मनको उनकी उक्त प्रकारको स्थितिपर आश्चर्य होता है। श्रीपुरके वह श्रीपार्श्वजिनेश्वर दिगम्बर शासन की लोकमें विशिष्ट जय करते हुए वर्तमान रहें ।
श्रीपुरके पार्श्वनाथका अतिशय प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि वहाँ भगवान पार्श्वनाथका जिनबिम्ब श्राकाशमें इतने ऊँचे स्थिर रहता
१ या पाश्र्वजिनेश्वरः तत्र विहायसि (नभसि) श्रास्ते । २ दृष्टः सन् ।