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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला eerS8650 साहिबुदीनने जब सपादलक्ष (सवालख) देश (नागौर-जोधपुरके आसपासके प्रदेश) को ससैन्य अाक्रान्त किया तो वे अपने सदाचारकी हानिके भयसे वहाँ से चले आये और मालवाकी धारा नगरी में अा बसे । इस समय वहाँ विन्ध्यनरेश (विक्रम सं० १२१७ से विक्रम सं० १२४६)का राज्य था ।' यहाँ पण्डित श्राशाधरजीने जिस मुस्लिम बादशाह साहिबुद्धीनका उल्लेख किया है वह शहाबुद्दीनगौरी है । इसने विक्रम सं० १२४६ (ई. सन् ११६२) में गजनीसे आकर भारतपर हमला करके दिल्लीको हस्तगत किया था
और उसका १४ वर्ष तक राज्य रहा । और इसलिये असम्भव नहीं इसी आततायी बादशाह अथवा उसके सरदाराने ससैन्य उक्त १४ वर्षों में किसी समय मालवाके उल्लिखित धन-धान्यादिसे भरपूर मङ्गलपुर नगरपर धावा मारा हो और हीरा-जवाहरातादिके मिलनेके दुर्लोभ अथवा धार्मिक विद्वेषसे वहाँ के लोकविश्रुत श्रीअभिनन्दनजिनके चैत्यालय और बिम्बको तोड़ा हो और उसीका उल्लेख मदनकीर्तिने "म्लेच्छ प्रतापागतः" शब्दों द्वारा किया हो । यदि यह ठीक हो तो यह कहा जा सकता है कि मदनकात्तिने इस शासनचतुर्विंशिकाको विक्रम सं० १२४६ और वि० सं० १२६३ या वि० सं० १३१४ के भीतर किसी समय रखा है और इसलिये जनका समय इन संवताका मध्यकाल होना चाहिये ।।
इस ऊहापोहसे हम इस निष्कर्षपर पहुँचते हैं कि मदनकीर्ति वि० सं० १८५ के पं० आशाधरजीकृत जिनयज्ञकल्पमें उल्लिखिप्त होनेसे उनके समकालीन अथवा कुछ पूर्ववर्ती विद्वान् निश्चितरूपमें हैं, और इसलिये उनका वि० सं० १२८५ के आसपासका समय सुनिश्चित है।